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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ____ २३ तेजमतूरी का कमाल ४. तेजमतूरी का कमाल सुनंदा और श्रेणिक के दिन आराम से कटते हैं। सुनंदा स्वयं को भाग्यशाली मानती हैं। श्रेणिक अपने आपको पुण्यशाली मानता है। एक दिन की बात है। किस्मत करवट लेने लगी है। धन सेठ और श्रेणिक दुकान पर ही बैठे थे। इधर-उधर की गपशप में लगे थे। इतने में बाजार में राजा की ओर से पीटे जा रहे ढिंढोरे के शब्द उन्होंने सुने। श्रेणिक ने धन सेठ से पूछा : 'क्या बात है! यह ढिंढोरा किस बात का है?' धन सेठ ने कहा : 'कुमार, सवा लाख पोट में तरह-तरह का कीमती किराना माल भरकर 'देवनंदि' नाम का एक बहुत बड़ा व्यापारी आया है। उस देवनंदि के पास एक तोता है। वह तोता छह-छह महीने के अंतर से बोलता है। उसे जो भी सवाल पूछो... वह उसका सही जवाब देता है। एक दिन देवनंदि ने तोते से पूछा : 'ओ तोते! तेजमतूरी अभी कहाँ पर उपलब्ध होगी?' तोते ने कहा : 'तेजमतूरी फिलहाल बेनातट नगर में मिलेगी।' देवनंदि को तोते की बात पर पूरा भरोसा था। वह सवा लाख पोट पर माल सामान लादकर यहाँ आया है। कल ही वह राजदरबार में गया था और राजा को कीमती नजराना पेश किया। राजा ने खुश होकर उससे पूछा : 'कहिए, सौदागर! हमारे नगर में कैसे आना हुआ?' देवनंदि ने कहा : 'महाराजा, 'तेजमतूरी' चाहिए। वह लेने के लिए आपके नगर में आया हूँ।' राजा ने अपने मंत्री से पूछा : ‘मंत्रीजी, इस सौदागर को तेजमतूरी कहाँ से प्राप्त होगी?' मंत्री को तो कुछ मालूम था नहीं! उसने कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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