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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेजमतूरी का कमाल २२ बादलों के आधार पर ही बारिश निभती है... बादलों के सहारे ही आकाश के सारे तारे हैं! वैसे मैं भी आपके आधार पर ही हूँ... इसलिए मुझे स्वीकार करो... और आपके अपने परिवार का निर्माण करो!' श्रेणिक ने कहा : 'सुनंदा... मेरे साथ तेरी शादी एक रुलानेवाला सपना बनकर रह जाएगी ! शादी हुई कि चार छह दिन में तो मैं यहाँ से परदेश की ओर प्रयाण कर जाऊँगा... रमते योगी और परदेशी का क्या भरोसा? मैं चला गया तब फिर तेरा क्या होगा ?' सुनंदा ने उतनी मजबूती के साथ कहा : 'कुमार... मैं तो संसार को छोड़कर दीक्षा लेने का ही सोच रही थी .... बचपन में! यह तो अचानक... तुम्हारा मिलना हुआ... तुम्हें देखा... तो लगा, तुम से जनम-जनम का कोई नाता बाकी है ... पुरानी प्रीत के गीत फिर झनझना उठे और मैं मन ही मन तुम्हें वरण करने का संकल्प कर बैठी .... शायद शादी के बाद यहाँ से दूर कहीं चले भी जाओगे... तो मैं तुम्हारी यादों में अपनी जिन्दगी गुजारुँगी....! शीलव्रत का पालन करूँगी! मैं तुम्हारी राह में पत्थर नहीं बनूँगी! निश्चिंत होकर तुम परदेश चले जाना!' सुनंदा का अडिग निर्णय व संकल्प देखकर कुमार मन ही मन प्रसन्न हो उठा । उसने सेठ से कहा : 'श्रेष्ठिवर्य, अभी जो समय है... वह श्रेष्ठ है... मैं इसी वक्त तुम्हारी बेटी के साथ शादी रचाऊँगा!' धनश्रेष्ठि ने तुरंत आननफानन में शादी का उत्सव रचाया। सुनंदा और श्रेणिक शादी के बंधन में बंध गये । For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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