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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ पहेलियाँ में जाना पड़ता है और पूरे शब्द के अर्थ की वस्तु तुम्हारे चरणों में देखी जा सकती है।' कुमार ने पल भर की देरी किये बगैर कहा : 'वह तीन अक्षर का शब्द है 'पावड़ी'। पा-जाने से 'वड़ी' शब्द बनता है, जिसका प्रयोग शादी के समय होता है। वनिकाल दें तो 'पाड़ी' बनेगा यदि घर में 'पाड़ी' हो तो दूध-घी की सुविधा रहती है। ड़ी-जाने से 'पाव' शब्द बनता है, उसका अर्थ है पाप | पाप करने से दुर्गति मिलती है, और पावड़ी तो पैरों में पहनी जाती है-यह तो सभी जानते ही हैं। सभागृह आनंद से नाच उठा। लोगों ने अमरकुमार का हार्दिक अभिनंदन किया। राजा ने भी दोनों को धन्यवाद दिया और कहा : 'अब मैं सवाल पूछता हूँ। पहले अमरकुमार को जवाब देना होगा। 'सरोवर का सार क्या? दानव-वंश का विख्यात राजा कौन? सदा सौभाग्यवती नारी कौन-सी? और मारवाड़ के आदमी किस वेशभूषा से पहचाने जाते हैं? अमरकुमार ने पलभर सोचकर कहा ; 'महाराजा, उसका प्रत्युत्तर है : 'कंबलिवेशा!' * 'क' का अर्थ है पानी। और पानी ही सरोवर का सार है। * 'बलि' नामक दानव-वंश का विख्यात राजा हो गया है। * 'वेशा' यानी 'वेश्या' वही सदा सौभाग्यवती नारी है। * मारवाड़ के लोग कंबली से पहचाने जाते हैं। इस लिए उन्हें 'कंबलिवेशा' कहा जाता है। राजा ने कहा : बिलकुल सत्य है तुम्हारा जवाब! राजसभा में 'धन्य' 'धन्य' की आवाजें गूंजी। राजा ने सुरसुंदरी से सवाल पूछा : 'काव्य का सच्चा रास कौन-सा होना चाहिए? चक्रवाक को दुःख कौन देता है? असती एवं वेश्या को कौन पुरूष प्रिय होता है? इन सवालों का जवाब एक ही शब्द में देना।' सुरसुंदरी ने कहा : 'अत्थमंत' * अत्थमंत यानि अर्थयुक्त। जो काव्य अर्थ बिना का हो, वह काव्य नहीं है। यानी काव्य का रस उसका अर्थ है। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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