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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जनम जनम तूं ही माँ ! www.kobatirth.org PARANT SODERN BEA ७. जनम-जनम तू ही माँ ! tas יייייייי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ जितनी तमन्ना और तन्मयता से सुरसुंदरी ने विद्याध्ययन किया था, कलाएँ सीखी थी, उतनी ही तमन्ना और तन्मयता से उसने जैन धर्म के सिद्धान्तों का अध्ययन भी किया था। साध्वी सुव्रता ने वात्सल्य भरे हृदय से उसे अध्ययन करवाया । विद्यार्थी की विनम्रता और विनय गुरु के दिल में वात्सल्य पैदा करते हैं, करुणा का झरना प्रवाहित करते हैं। गुरु का वात्सल्य और गुरु की करुणा विद्यार्थी में उत्साह एवं उद्यम पैदा करती है। अमरकुमार ने भी जैनाचार्य कमलसूरिजी के चरणों में बैठकर अध्ययन किया। विनय, नम्रता वगैरह गुणों के साथ उसमें तीव्र बुद्धि भी थी । आत्मवाद का उसने गहरा अध्ययन किया । कर्मवाद का विशद अध्ययन किया । अनेकांतवाद की व्यापक विचारधारा को अंतस्थ बनाया । सुरसुंदरी को साध्वी सुव्रताजी ने कर्म का सिद्धांत समझा कर पंचपरमेष्ठी के ध्यान की प्रक्रिया समझायी । अध्यात्मयोग की गहन बातें बतलायी। समग्र चौदह राजलोक की समूची व्यवस्था का ज्ञान आत्मसात् करा दिया । मोक्षमार्ग की आराधना का क्रमिक विकास बताया । For Private And Personal Use Only एक दिन अमरकुमार आचार्य श्री की वंदना करके उपाश्रय के सोपान उतर रहा था और सुरसुंदरी आचार्य श्री की वंदना करने के लिए उपाश्रय के सोपान चढ़ रही थी। दोनों की आँखें मिलीं। 'ओह... सुंदरी?' 'बहुत दिन बाद मिले नहीं, अमर?' 'हाँ... अब कहाँ हम एक पाठशाला में पढ़ाई करते हैं ? अध्ययन करने के स्थान अलग-अलग हो गये, तो मिलना भी इसी तरह अचानक हो, तो हो ।' 'सही बात है तेरी, अमर, पर...' ‘पर क्या, सुंदरी? अध्ययन में तू इतनी डूब गयी होगी कि अमर तो याद भी नहीं आता होगा ... है न ?' अमर के चेहरे पर शरारत तैर गई। 'सच बताऊँ? ... अमर, एक भी दिन ऐसा नहीं जाता कि तू याद न आता
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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