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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सभी का मिलन शाश्वत में ३३० अH .RX.NIH .C iala.castitish Bossirinkaरका [४८. सभी का मिलन शाश्वत में sunity रत्नजटी ने गुणमंजरी को क़ीमती वस्त्रालंकार भेंट किये। अक्षयकुमार के लिए भी अनेक सुंदर वस्त्रालंकार और खिलौने दिये। सभी से अश्रु-पूरित विदा लेकर वह अपनी रानियों के साथ अपने नगर में चला गया। महाराजा गुणपाल ने भी बेनातट नगर जाने के लिए धनावह श्रेष्ठी की इजाजत माँगी। वे बेनातट नगर चले गये। धनवती अपने हृदय पर पत्थर रखकर विरह की व्यथा के छूट पीती हुई गुणमंजरी के तन-मन का खयाल करने लगी। गुणमंजरी ने सुंदर कपड़े पहनने छोड़ दिये... अलंकार छोड़ दिये। वह एक साध्वी जैसे जीवन व्यतीत करने लगी। धनवती के साथ वह भी अनेक प्रकार की धर्म आराधना में अपना दिल पिरोती है। रानी रतिसुंदरी भी गुणमंजरी को अपनी बेटी की भाँति सम्हालने लगी। बरस गुजरते हैं। समय का बहाव कितना तेज रहता है! अक्षयकुमार भी तरूण हो गया । कलाओं के आचार्यों के पास अनेक प्रकार की कलाएँ सीखता है। गुणमंजरी पूरी देखभाल रखती है उसकी। पुत्र के साथ जीवन में किसी भी तरह का दूषण प्रविष्ट न हो, इसके लिए वह पूरी सावधानी रखती है, खयाल करती है! रोज़ाना पुत्र को अपने पास बिठाकर सुंदर, कहानियाँ सुनाती है। अमरकुमार और सुरसुंदरी की बातें करती है... कभी अक्षयकुमार जिद्द पकड़ लेता है... 'माँ, चल ना... हम पिताजी के पास चलें...।' तब गुणमंजरी उसे कहती : 'बेटा, तेरे पिताजी जब यहाँ आएँगे तब उनके पास जाएंगे।' __ कभी गुणमंजरी रात-रात भर अमरकुमार और सुरसुंदरी की यादों में खोयी हुई जागती रहती है...| आँसू बहाती है... श्री नवकार महामंत्र का स्मरण करती है। उसने प्रतिदिन १०८ नवकार मंत्र का जाप करने की प्रतिज्ञा ले रखी है। वह मिष्टान्न नहीं खाती...। न बालों का सिंगार सजाती है... पान-सुपारी नहीं लेती है... जब-जब मन व्याकुल होता है... तब गृह-मंदिर में जाकर For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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