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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ आंसुओं में डूबा हुआ परिवार आश्चर्य के साथ 'भाई...' की पुकार निकली। सामने से 'बहन' की आवाज देते हुए रत्नजटी दौड़ता आया। भाई-बहन के अद्भुत मिलन ने सभी की आँखों में नमी भर दी। सुरसुंदरी चारों भाभियों से लिपट गयी। एक के बाद एक भाभी ने सुरसुंदरी को स्नेह से अभिसिंचित किया। सुरसुंदरी ने सर्वप्रथम अमरकुमार का परिचय करवाया इसके बाद गुणमंजरी... माता-पिता... धनावह सेठ... धनवती सभी का परिचय करवाया। महाराजा रिपुमर्दन ने नगर में पधारने के लिए रत्नजटी से विनती की। काफी जोर-शोर से रत्नजटी के परिवार का स्वागत किया। रत्नजटी ने राजमहल में पहुँचकर राजा रिपुमर्दन और श्रेष्ठी धनावह से विनती की :'हे पूज्यवर, इन दंपति का दीक्षामहोत्सव संपन्न करने की मुझे अनुज्ञा दीजिए।' रत्नजटी को अनुज्ञा मिल गयी | उसने विद्याधरों को आज्ञा करके चंपानगरी को इंद्रपुरी सी बना दी। रत्नजटी की चारों रानियाँ तो सुरसुंदरी को घेर कर ही बैठ गयीं। बेनातट नगर में बीती हुई तमाम घटनाएँ सुरसुंदरी ने कह सुनायी...| पुरूषरूप में गुणमंजरी के साथ शादी की बात सुनकर तो रानियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ीं! गुणमंजरी को भी एक-एक रानी ने प्यार से सराबोर कर दिया। दीक्षा-महोत्सव काफी भव्यता से मनाने के सभी तैयारियाँ हो चुकी थी। इतने में बेनातट से महाराजा गुणपाल और रानी गुणमाला भी आ पहुँचे सपरिवार | महाराजा रिपुमर्दन और श्रेष्ठी धनावह ने बड़े प्रेम से उनका भव्य स्वागत किया। गुणमंजरी ने स्वयं ही अपने माता-पिता के मन को तुष्ट कर दिया। रत्नजटी का परिचय करवाया। राजा गुणपाल रत्नजटी से मिलकर अति प्रसन्न हुए। रत्नजटी ने सुरसुंदरी की दिल खोलकर प्रशंसा की। राजा गुणपाल भी सुरसुंदरी के अनेक गुण याद करते-करते गद्गद हो उठे। विमलयश के रूप को याद करके सभी हँस पड़े। गुणमाला ने रत्नजटी से कहा : 'हे नरेश्वर, गुणमंजरी को एक भी भाई नहीं है... तुम...' _ 'आज से गुणमंजरी मेरी बहन है राजन! इसकी आप किसी भी प्रकार की चिंता मत करना। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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