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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ संयम राह चले सो शूर 'महाराजा, मैं चंपानगरी से श्रेष्ठी धनावह का संदेश लेकर आया हूँ।' 'कहो, श्रेष्ठी धनावह और अमरकुमार कुशल तो हे न?' 'जी हाँ, वे सब कुशल हैं, और आपको कहलाया है कि अमरकुमार और उनकी धर्मपत्नी सुरसुंदरी, इस संसार का परित्याग कर के चारित्रधर्म अंगीकार करने के लिए तत्पर हो गये हैं। दीक्षा महोत्सव में आपको परिवार के साथ पधारने की विनती की है।' ___ चंपानगरी से आये हुए दूत ने बेनातट नगर की राजसभा में राजा गुणपाल के समक्ष निवेदन किया। राजा गुणपाल संदेश सुनकर पलभर तो स्तब्ध रह गये... वे बोल उठे : ___ 'तो फिर गुणमंजरी का क्या?' 'महाराजा, जहाँ तक मेरी जानकारी है... उन्होंने भी अनुमति प्रदान की है।' राजसभा का विसर्जन किया गया। राजा गुणपाल सीधे ही अंत:पुर में गये। महारानी को समाचार दिये, और चंपा जाने की तैयारी करने की सूचना भी दे दी। रानी गुणमाला का हृदय काँप उठा | समाचार सुनकर! महाराजा के मन में भी तरह-तरह के विकल्पों के वर्तुल बनने-बिगड़ने लगे। गुणमंजरी के विचार उनके दिल को उद्विग्न किये जा रहे थे।' प्रयाण की तैयारियाँ हो गयी...। राजा गुणपाल ने परिवार के साथ अनेक सैनिक वगैरह को लेकर समुद्र के रास्ते चंपानगरी की ओर प्रयाण कर दिया। 'बेटी, तेरे बिना हमारा जीवन शून्य हो जाएगा!' 'पिताजी आपकी दूसरी बेटी भी है ना? गुणमंजरी क्या आपकी बेटी नहीं है? आप उसे सुरसुंदरी हीं समझना। गुणमंजरी में मेरा ही दर्शन करना। महाराजा रिपुमर्दन और रानी रतिसंदरी दोनों रथ में बैठकर श्रेष्ठी की हवेली पर आये थे। अमरकुमार और सुरसुंदरी की दीक्षा लेने की बात जानकर दोनों अत्यंत व्यथित हो गये थे। दोनों के चेहरे उदासी में डूब गये थे। रतिसुंदरी तो बेटी को अपनी गोद में लेकर फफक-फफककर रो पड़ी। महाराजा रिपुमर्दन ने कहा : 'बेटी, तू तो वैसे भी संसार में रहते हुए भी साध्वी जीवन ही गुज़ार रही For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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