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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिदाई की घड़ी आई २८८ 'ओफ! ओह...' सुरसुंदरी बरबस हँस पड़ी। 'यह तो आप तब भी कर चुके थे जब गुणमंजरी नहीं थी !! भुला दिया था न मुझे? और देखो, गुणमंजरी तो खुद ही मुझे भुलाने न दे, वैसी है। चूँकि उसने पहले शादी मुझसे रचायी है .... समझे?' 'अच्छा... तो इतना ऐतबार है गुणमंजरी पर !' 'हाँ, आप नहीं जानते हैं । गुणमंजरी सचमुच गुणों की मंजरी है। उसके संस्कार बड़े उच्च कोटि के हैं । स्त्रीसुलभ ईर्ष्या या छिछलापन उसमें ज़रा भी नहीं है! प्रेम के वास्तविक रुप को उसने समझा है। वह उदार है । विशालहृदया है। वह अपने सुख में सुखी और अपने दुःख में दु:खी होनेवाली सन्नारी है। मैं तो उसे अच्छी तरह जान चुकी हूँ। ऐसी कन्या शायद ही मिले। जितनी गुणी, उतनी ही मासूम...! समझदारी और सूझबूझ में शालीन है, तो व्यवहार में बिलकुल बाल-सुलभ सरलता से संपन्न उसका व्यक्तित्व है!' अमरकुमार का मन आश्वस्त हुआ । उसके चेहरे पर प्रसन्नता की ज्योति झिलमिला उठी। सुरसुंदरी ने दूर खड़ी हुई मालती को देखा । मालती ने संकेत से भोजन की सूचना दी। अमरकुमार को लेकर वह भोजन - गृह में पहुँची । अमरकुमार को भोजन करवाकर उसने भोजन कर लिया । मालती के सामने मधुर स्मित करती हुई वह अमरकुमार के पास चली गयी। मालती आँखें नचाती हुई मन ही मन बोल उठी : 'जोड़ी तो जैसे इन्द्र-इन्द्राणी की है !' सुरसुंदरी ने यक्षद्वीप पर की बातें विस्तार से अमरकुमार को सुनायी । यक्षराजा के उपकारों का वर्णन करते-करते तो वह गद्गद् हो उठी । इतने में राजमहल से बुलावा आ गया। दोनों तैयार होकर राजमहल में पहुँचे। महाराजा ने प्रेम से दोनों का स्वागत किया । महारानी भी वहीं बैठी हुई थी। सुरसुंदरी ने महारानी के चरणों में नमस्कार किया । अमरकुमार ने भी सिर झुकाकर नमस्कार किया। महारानी ने अमरकुमार को गौर से देखा । रानी का मन प्रसन्न हो उठा । 'कुमार, राजपुरोहित ने शादी का शुभतम मुहूर्त वसंतपंचमी का दिया है। यानी आज से पाँचवें दिन शादी करनी है । ' 'सुंदर... बहुत बढ़िया ... दिन भी निकट ही है।' सुरसुंदरी बोल उठी । ‘राजपुरोहित कह रहे थे कि दिन शुभतम है ।' 'गुणमंजरी को बताया मुहूर्त के बारे में?' सुरसुंदरी ने पूछा। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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