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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बिदाई की घड़ी आई 'यह औरत कौन है ?' www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी ने कहा : 'पहले मेरी मेज़बान थी... फिर परिचारिका और अब मेरी सहेली कहूँ तो भी गलत नहीं ! ' २८६ 'बड़ी चतुर और कुशल है! कर्तव्यदक्ष भी है!' 'हम उसे चंपानगरी ले चलेंगे। पर अभी तो हम दोनों को महाराजा के पास जाना है। आप तैयार हो जाइए...।' अमरकुमार का प्रफुल्लित हो उठा था । बेनातट में सुरसुंदरी की अपूर्व लोकप्रियता को देखकर वह बड़ा प्रभावित हुआ था । दोनों दंपत्ति तैयार होकर राजमहल में पहुँचे। महाराजा गुणपाल मंत्रणा - गृह में बैठे हु थे। अमरकुमार और सुरसुंदरी ने जाकर प्रणाम किये। महाराजा ने बड़े स्नेह से दोनों का अभिवादन किया। 'आओ... आओ... मैं तुम दोनों की ही प्रतीक्षा कर रहा था!' अमरकुमार के सामने देखते हुए महाराजा ने कहा : 'कुमार, तुम्हें तो सुरसुंदरी मिल गयी... पर हमारा तो विमलयश खो गया... हम तो उसे गवाँ बैठे!' और तीनों खिलखिलाकर हँस दिये । 'कुमार, तुम्हें मेरे विमलयश ने काफी दुःख दिये, नहीं ?' महाराजा ने सुरसुंदरी के सामने देखते हुए कहा । ‘पिताजी, मैंने अपने अपराधों की क्षमा माँग ली!' 'और, मैंने कर भी दी क्षमा ।' 'तब तो अच्छा ही हुआ । आपस में ही समस्या का समाधान खोज लिया...! ठीक है, पर कुमार, अब तुम्हें मेरी एक विनती स्वीकार करनी होगी!’ 'महाराजा, आपको विनती करनी नहीं है । ... आज्ञा कीजिए | मैं तो आपके पुत्रतुल्य हूँ।' 'कुमार... यह तुम्हारी नम्रता है, तुम्हारे गुणों से मैं प्रसन्न हुआ हूँ ।' 'आप आज्ञा कीजिए ।' For Private And Personal Use Only 'तुम्हें गुणमंजरी के साथ शादी रचानी है!' अमरकुमार ने सुरसुंदरी के सामने देखा । सुरसुंदरी ने कहा : 'नाथ, महाराज का प्रस्ताव उचित है । मेरी भी यही इच्छा है... और मैंने
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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