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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra एक अस्तित्व की अनुभूति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SALOMON SARANDA WANAAM ॥। ४१. एक अस्तित्व की अनुभूति २७८ 'नाथ! आप क्षमा न माँगे ... आपको क्षमा माँगनी नहीं है ।' I 'सुंदरी, मैंने तेरा कितना बड़ा विश्वासघात किया है । तेरा अक्षम्य अपराधी हूँ... मैंने तुझे मौत के द्वीप पर असहाय स्थिति में छोड़ दिया... तू मेरे अपराधों को क्षमा कर दे... मैं सच्चे दिल से क्षमायाचना करता हूँ... । तू सचमुच ही महासती है...। तेरे सतीत्व के बल पर ही तू जिंदा रही है... । तेरा पुण्यबल प्रकृष्ट है...। मैंने तो तुझे दुःख देने में कोई कसर नहीं रखी... पर तेरे अगिनत पुण्यों ने तुझको बचा लिया...। तू सुखी बनी...। पर मुझे बता सुरसुंदरी, तूने ये बारह साल कैसे गुज़ारे ? न जाने कितनी यातनाओं में से तू गुज़री होगी...? कैसे कैसे कष्ट तुझे झेलने पड़े होंगे... । मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता...। यह सब हुआ भी मेरे कारण ! ' अमरकुमार का स्वर आँसुओं से सिक्त था । रात का तीसरा प्रहर पूरा हो गया था। चौथा प्रहर प्रारंभ हो चुका था । सुरसुंदरी ने स्वस्थ होकर, यक्षद्वीप से लगाकार एक के पश्चात एक घटनाएँ सुनानी आरंभ किया । अमरकुमार सुरसुंदरी की तरफ टकटकी बाँधे हुए ... ऊँची साँस से सुन रहा है सब कुछ ! यक्षराज को वंदना करता है मन ही तो धनंजय और फानहान की पाशविकता पर थूकता है... । चोरपल्ली में प्रगट हुई शासनदेवी की कृपा पर मुग्ध हो उठता है। मन... For Private And Personal Use Only रत्नजटी से मिलना... नंदीश्वर द्वीप की यात्रा... सुंरसंगीतनगर मे रत्नजटी और उसकी चार पत्नियों के निर्मल स्नेह की बातें करते-करते तो सुरसुंदरी रो पड़ी। अमरकुमार की आँखें भी गीली हो गयी । रत्नजटी की चार पत्नियों के द्वारा दी गयी चार विद्याएँ... बेनातट नगर में आकर धारण किया हुआ पुरूष रूप... । ‘विमलयश' नाम यह सब सुनकर तो अमरकुमार दंग रह गया! आश्चर्य से स्तब्ध हो गया ! ‘तो क्या विमलयश वह तू ही थी ?' अमरकुमार की उत्सुकता पूछ बैठी । 'जी हाँ... स्वामीनाथ! मैं ही विमलयश था!' और गुणमंजरी के साथ की हुई शादी की बात सुनकर तो अमरकुमार हँस पड़ा। राज्य प्राप्ति की बात सुनकर प्रफुल्लित हो उठा।
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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