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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर और स्वर का सुभग मिलन २५९ ___ 'पर अमरकुमार खुद सहमत नहीं हुए तो?' विमलयश के दिमाग के दरियें में एक के बाद एक सवालों की तरंगे उठने लगीं। ___ 'मैं उन्हें पहले ही से राजी कर लूँगी। मैं उन्हें पहले ही से इतना प्रभावित बना डालूँगी कि वे बात को टाल ही नहीं पाएँ! मेरी कही बात से इनकार न कर सकें! 'हाँ, उन्हें प्रभावित करने के लिए मुझे कोई नाटक तो करना ही होगा! ...इस वेश में, मैं नाटक भी अच्छा कर पाऊँगी...! और फिर अब तो मैं राजा भी हूँ! इसलिए उन्हें प्रभावित करने का रास्ता और सरल हो जाएगा! ___ मैं इस वेश में ही उनसे वचन लँगी... उन्हें वचनबद्ध कर लूँगी कि तुम्हें अपनी पत्नी तो वापस मिलेगी पर बाद में उसकी बात भी माननी होगी!' ऐसा कुछ वादा पहले ही से करवा लूँगी।। __'तू कबूल तो करा लोगी... परंतु उन दोनों के खुद के दिल नहीं मिले तो? शादी तो कर लेंगे तेरे कहने से या तुझसे उपकृत होकर, पर यदि उनका मन मिल नहीं पाया... उनका हृदय एक दूजे में नहीं खिल पाया तो? बेचारी गुणमंजरी दुःखी-दुःखी हो जाएगी ना? पत्नी को यदि पति का प्यार न मिले तो..? उसका शादी करने का अर्थ क्या? उसके जीवन में फिर बचे भी क्या? और इस तरह एक स्त्री की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना...!!!' विमलयश बेचैन हो उठा | वह खड़ा हुआ | महल के झरोके में जाकर खड़ा रहा। __'अमरकुमार के साथ गुणमंजरी का जीवन सुखमय होना चाहिए... मेरे स्वार्थ की खातिर गुणमंजरी की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता!' उसका भीतरी मन बोल उठा। 'पर मैं इसका अंदाजा लगाऊँ भी कैसे? निर्णय तो कैसे करूँ? गुणमंजरी वैसे तो पुण्यशालिनी कन्या है, पर फिर भी कोई पापकर्म उदित होनेवाला हो और उसमें मैं यदि निमित्त बन जाऊँ तो? मैं स्वयं दुःख सहन कर लूँ, परंतु उस कोमलांगी का दुःख मुझसे नहीं सहा जाएगा! हालाँकि मैं उसे अपने पास ही रखूगी... मेरी तरफ से उसे भरपूर प्यार मिलेगा... मैं उसे जिगर के टुकड़े की भाँति रखूगी...!' ___ 'फिर भी मुझे निश्चिंत हो जाना चाहिए...। जब तक मैं निश्चित नहीं हो जाऊँ तब तक शांत कैसे रहूँगी? उन दोनों का जीवन सुखमय... सुसंवाद से भरा-पुरा बना रहे । इसका स्पष्ट निर्देश मुझे मिलना चाहिए।' और यकायक For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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