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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर और स्वर का सुभग मिलन २५८ ___नहीं... नहीं..., मैं उसे प्यार से मना लूँगी। समझा दूँगी! एक झूठ को बनाये रखने के लिए मुझे न जाने कितने झूठ रचाने पड़ेंगे...? कितने स्वाँग बनाने होंगे? करूँ भी क्या? और कोई चारा ही नहीं है न? उसे धोखे में रखे बगैर छुटकारा नहीं है। ___शादी करने से इनकार कर दूँ तो? तब तो महाराजा स्वयं मेरे जीवन की किताब की छानबीन करना चाहेंगे कि 'यह विमलयश शादी करने से इनकार क्यों कर रहा है?' और गुणमंजरी तो मेरे अलावा अन्य किसी से शादी करेगी ही नहीं! विमलयश की स्मृति सीप में चोर की गुफा में सुने हुए गुणमंजरी के शब्द मोती बनकर उभरने लगे। चोर की तलवार से ज़रा भी डरे बगैर उसने साफसाफ शब्दों में सुना दिया था कि... 'मैं अपने मन से विमलयश का वरण कर चूकी हूँ... वही मेरा प्राणप्रिय है!!' ___ वह तहेदिल से मुझे चाहती है। मैं यदि शादी करने से इनकार कर दूं तो शायद वह कोई अनुचित साहस भी कर बैठे! आत्महत्या कर ले! स्त्री के नाजुक दिल की संवेदना स्त्री ही समझ सकती है! जब मेरे पिताजी ने मेरे शादी की अमर के साथ करने का प्रस्ताव अमर के पिता के समक्ष रखा था... और अमर के पिताजी ने अमर से बात की थी, तब अमर ने शादी करने से इनकार कर दिया होता, तो क्या होता? मैं तो शायद पागल ही हो जाती! चंपा की गलियों में 'अमर... अमर...' करती हुई भटकती रहती! स्त्री जब किसी को अपना दिल दे देती है... तब प्रेम की खातिर वह अपने प्राण की परवाह भी नहीं करती है! 'शादी तो मुझे करनी ही होगी... परंतु अमरकुमार के आने के बाद-भेद खुल जाने के बाद फिर क्या होगा?' विमलयश का मन पशोपेश में उलझ गया। पर तुरंत ही उसने उपाय खोज निकाला | मैं गुणमंजरी की शादी अमर के साथ करवा दूंगी! ‘पर गुणमंजरी सहमत होगी, अमरकुमार के साथ शादी करने के लिए?' दूसरा सवाल उठा... यदि वह सहमत नहीं हुई तो क्या उस समय वह मुझे नफरत नहीं करेगी? मुझे ताना नहीं मारेगी? 'तुम खुद औरत थी तो फिर मेरे साथ शादी क्यों रचायी? मुझे धोखा क्यों दिया? नहीं, नहीं, अमरकुमार का रूप... उनका व्यक्तित्व... देखकर गुणमंजरी उनके साथ शादी करने को ज़रूर सहमत हो जाएगी। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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