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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोर का पीछा २४६ खिड़कियों बंद थे। नगररक्षक एवं सेना के सुभट लोग भी अपने घरों पर आराम कर रहे थे। विमलयश ने ही सबको छुट्टी दे रखी थी। विमलयश के महल के दरवाज़े खुले थे। महल का एक-एक खंड बिलकुल खुला था। कमरे में रही हुई जौहरात की पेटियाँ सब खुली पड़ी थीं। न कोई रक्षक था... न किसी को ताला लगा था। एक कमरे में विमलयश श्री नवकार मंत्र के ध्यान में लीन बना था । ध्यान पूर्ण करके विद्यादेवियों की आराधना में प्रवृत्त उसने दो विद्यादेवियों की स्मृति की : एक अदृश्यकरणी और दूसरी हस्तिशतबलिनी। दोनों विद्यादेवियाँ प्रकट हुई। विमलयश अदृश्य हो गया। उसके शरीर में सौ हाथियों की शक्ति संक्रमित हो गयी। विद्यादेवियाँ अंतर्धान हो गयीं... और इधर तस्कर ने महल में प्रवेश किया। उसकी ताज्जुबी का पार नहीं था... उसने महल तक आने के रास्ते में किसी भी आदमी को पहरे पर खड़े या चहलकदमी करते हुए भी नहीं देखा। सैनिक वहाँ पर नहीं थे। विमलयश के महल के इर्दगिर्द भी जरा भी चौकी या सुरक्षा का प्रबंध नहीं था। महल के दरवाजे खुले थे। सावधानी से, नंगी तलवार हाथ में लिए चोर महल में घुसा। उसने महल के कमरों में जवाहरात की पेटियाँ बिलकुल खुली पड़ी हुई देखा... वह तो आश्चर्य से स्तब्ध रह गया। वह पूरे महल में घूम आया... पर उसे विमलयश का दर्शन नहीं हुआ। विमलयश तस्कर पर बराबर निगाह जमाये एक कोने में खड़ा है। तस्कर न तो विमलयश को देख रहा है... नहीं कुछ ज्यादा सोच भी रहा है। वह सोचता है : शायद बेचारा परदेशी कुमार मुझसे डरकर महल को छोड़कर कहीं भाग गया है...। खैर, यदि मिला होता तो यमलोक में भिजवा देता... पर अब तो उसकी सम्पत्ति हथिया लूँ...।' उसने मूल्यवान रत्नजवाहरात वगैरह की गठरी बाँधी और वह महल से बाहर निकला। विमलयश भी अपनी कमर पर तीक्ष्ण हथियार छुपाकर तैयार ही खड़ा था। उसने पीछा किया तस्कर का। तस्कर आगे और विमलयश पीछे | नगर के किले के निकट आकर तस्कर ने इधर-उधर झांककर गुप्त मार्ग में प्रवेश For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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