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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोर का पीछा २४५ _और वह काँप उठी। उसके चेहरे पर शोक की कालिमा छा गयी... उसके हृदय की सांसे गरम हो गयी... वह मन ही मन सोचती है : __'ओह... यह अचानक सब क्या हो गया? क्या मेरी किस्मत में ऐसा घोर दुःख उठाना ही लिखा होगा? और मुझे क्षमा करना विमल... मेरे देव... मैंने तुम्हारा नाम बोलकर तुम्हारा अक्षम्य अपराध किया है... | मेरे साथ साथ तुम्हें भी संकट में डाल दिया... न जाने चोर क्या करेगा तुम्हारे साथ?' उसकी कल्पनासृष्टि में विमलयश की स्नेहार्द्र दृष्टि उभरने लगी। उसके कानों पर जैसे कि वीणा के तार झंकृत होकर हौले-हौले टकराने लगी...| पर वह आनंद विभोर नहीं हो सकी। वरना तो वीणा की झंकार ही उसे पागल बना देती... उसके कदम थिरकने लग जाते | उसके चेहरे पर की ग्लानि कुछ कम हुई... उसका भीतरी प्रेमसागर कुछ हिलोरे लेने लगा... और उसकी आँखों में आँसू भर आये। 'पिताजी मेरी खोज ज़रूर करवाएँगे ही। मेरे अपहरण के समाचार तो विमल ने भी जाने ही होंगे। वह भी कितना दुःखी हुआ होगा? जैसे मैं उसे मेरी समग्रता से चाहती हूँ... वैसे वह भी मेरे लिए तरसता तो होगा ही...| मुझे खोजने के लिए भी निकल गया हो...। वह जान पाया होगा मेरी पीड़ा को? वह महसूस कर पाएगा मेरी वेदना को? ___ दिनभर वह प्रतीक्षा की आग आँखो में जलती रखकर टकटकी बाँधे निहारती रही गुफा में दरवाज़े की ओर, पर उसे केवल निराशा ही हाथ लगी। इधर वेश बदलकर बेनातट नगर में प्रविष्ट हुआ चोर यह जान पाया कि उसे पकड़ने के लिए ओर राजकुमारी को वापस लाने के लिए विमलयश ने ही घोषणा की है। चोर ने ठहाका लगाया... वह विमलयश के महल के निकट आया। महल के इर्दगिर्द घूमकर उसने कोई जान न पाए इस ढंग से बारीकी से अवलोकन कर लिया। अपने मन में एक भयानक योजना भी बना डाली। रात उतर आयी बेनातट पर! आकाश की गंगा में से चांदनी की श्वेत शुभ्र धारा धरती पर जैसे कि उतर आयी थी। जैसे दूध की भरी तलैया नज़र आ रही थी। आसपास का वातावरण शांत था पर भयाक्रांत था...| करीब रात का दूसरा प्रहर पूरा हो गया था। बेनातट नगर के राजमार्ग सुनसान हो चुके थे। सभी मकान एवं For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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