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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा भी लुट गया २३८ __'हाँ कुमार, वह घोड़े पर बैठकर किले के दरवाज़े पर आया... और सैनिकों को इशारे से समझा दिया कि 'मैंने चोर को मार डाला है।' सैनिक तो हर्ष मनाते हुए वहाँ से चले गये | द्वाररक्षक ने महाराजा के अंदर जाते ही दरवाज़े बंद कर दिये। नकली राजा राजमहल में पहुँच गया बेरोकटोक। सीधा महारानी के पास | शयनगृह में दिये मद्धिम-मद्धिम जल रहे थे। उसने महारानी को जो जागती ही बैठी थी, कहा 'मैं गुणमंजरी को साथ ले जा रहा हूँ | चोर पकड़ा गया है... मैंने महाकाल की मनौती मानी थी कि यदि चोर पकड़ा जाएगा तो मैं तुरंत ही गुणमंजरी को साथ लेकर महाकाल भगवान के दर्शन करूँगा...। मिठाई की थाली चढ़ाऊँगा। दो घटिका में तो हम वापस लौट आयेंगे।' महारानी प्रसन्न हो उठी चोर के पकड़े जाने का समाचार पाकर | उसे संदेह होने का कोई कारण नहीं था । गुणमंजरी को तुरंत जगाया और उसे नकली महाराजा के साथ रवाना कर दिया । गुणमंजरी आधी तो नींद में ही थी। राजा के साथ चुपचाप घोड़े पर बैठ गयी। घोड़ा तीव्र वेग से नगर के पश्चिमी दरवाज़े से बाहर निकल गया।' _ 'ओह... पर सरोवर में पड़े हुए महाराजा का क्या हुआ?' विमलयश का स्वर उद्विग्नता से छलक रहा था। उसका मन अशांत हो उठा था। __ 'महाराज जिसे चोर का सर मान रहे थे... वह दरअसल में तो एक मटका था, जिसे कि सफेद रंग से रंग दिया था। जैसे ही मटका हाथ में आया... महाराज चौंक उठे। उन्होंने किनारे की तरफ नज़र उठायी तो कुछ भी दिखता नहीं था। तुरंत वे तैरते हुए लौटे किनारे पर | तो वहाँ न तो धोबी था... न ही घोड़ा था... केवल गधा खड़ा था। वे सारी बात समझ गये कि वह धोबी ही चोर था। वे गीले कपड़े में दरवाज़े पर आये... चौकीदार को आवाज लगाई पर चौकीदारों ने दरवाज़ा नहीं खोला... राजा ने उन्हें परिस्थिति समझाने की भरसक कोशिश की। जो घटना हो गई थी उसका बयान किया, पर द्वार-रक्षक तो एक ही बात पर अड़े हुए थे। 'हमारे महाराजा तो कुछ देर पहले ही घोड़े पर बैठकर चले गये हैं चोर को मारकर | तुम नये कहाँ से पैदा हो गये?' महाराजा मन मसोसकर रह गये। उन्हें रानी की चिंता हो रही थी। सारी रात राजा ने किले के बाहर बितायी... सुबह में जब द्वार खुले तो चौकीदार अपने महाराजा की दुर्दशा देखकर रो पड़े। वे तो बिचारे मारे डर के कापने लगे, पर For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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