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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा भी लुट गया २३७ 'कृपावतार, आप जैसे मालिक हैं... दरवाज़े पर खड़े हुए... फिर मुझे डर काहे से? गधे की पीठ थपथपाते हुए धोबी बोला : ____ 'ठीक है, जा सरोवर के किनारे! पर यदि चोर उधर आए या तुझे दिखाई दे तो जोर से चिल्लाना, मैं घोड़े पर बैठकर तुरंत ही वहाँ पहुँच जाऊँगा।' ___ 'आपकी कृपा है महाराजा, ज़रूर, चोर के दिखते ही मैं आवाज़ लगाऊँगा। आप तुरंत चले आना... चोर आज तो पकड़ा ही जाएगा। हाँ, उसे शायद मालूम हो गया कि मैं महारानी के क़ीमती कपड़े धोने के लिए सरोवर के किनारे जाता हूँ... तो वह इन कपड़ों की लालच में भी आ जाएगा। आपका कहना वाज़िब है। आज तो उस चोर के सिर पर काल सवार होने जा रहा है। चल चाचा, चल...' यों कहकर गधे को थपथपाते हुए धोबी सरोवर की तरफ चल दिया। महाराज घुड़सवार करते हुए चारों दिशा के दरवाज़े पर जाकर पूछताछ कर आये। रात का दूसरा प्रहर पूरा होने में था। इतने में सरोवर की तरफ से धोबी की चीख सुनायी दी। महाराजा ने सैनिकों से कहा : तुम यहाँ नंगी तलवार के साथ खड़े रहना... मैं सरोवर के किनारे पर जाता हूँ... शायद चोर भागकर इस तरफ आए, तो जिंदा या मरा हुआ उसे पकड़ लेना।' महाराज अश्वारूढ़ होकर वेग से सरोवर के किनारे आ पहुँचे। इतने में तो धोबी दौड़ता हुआ और काँपती आवाज में बोला : 'महाराज, चोर आया था... मैं चिल्लाया तो वह डर के मारे सरोवर में कूद गया... देखिए... दूर-दूर वह तैरता हुआ जा रहा है... उसका सिर भी नज़र आ रहा है।' धोबी काँप रहा था... राजा ने कहा : 'अब तो उसकी मौत आयी समझ । ले यह मेरा घोड़ा पकड़... मेरे कपड़े वगैरह सम्हाल । मैं अभी सरोवर में कूदकर उसका पीछा करता हूँ।' यों कहकर कपड़े... मुकुट... और दूसरे शस्त्र धोबी को सौंपकर महाराजा ने हाथ में केवल कटार लिए और कमर पर अधोवस्त्र पहने सरोवर में कूद गये... चोर का पीछा करने के लिए तैरते हुए आगे बढ़ने लगे... उधर वह चोर भी आगे बढ़ रहा था, तैरते-तैरते महाराजा दूर निकल गये...| इधर उस धोबी ने महाराजा के कपड़े पहन लिये... सिर पर मुकुट चढ़ाया और घोड़े पर चढ़ बैठा । अपने चेहरे को राजा के चेहरे-सा बना लिया ।' 'वह धोबी ही चोर था न?' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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