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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१९ राजमहल में मालती चली गयी राजमहल की ओर, और इधर विमलयश स्वस्छ वस्त्र पहनकर श्री नवकार मंत्र का ध्यान करने के लिए बैठ गया। जाप-ध्यान पूर्ण करके विमलयश बगीचे में पलाश वृक्ष के नीचे छाया में जाकर बैठा। प्रेमी का प्रेम जब प्रेम के बल पर अपनी सिद्धि प्राप्त करने के लिए तत्पर बनता है-तब कृतनिश्चयी योद्धा का रूप धारण करता है। विमलयश की निगाह आकाश में घूमने लगी। आकाश में सहस्ररश्मि दमक रहा था - पर यकायक एक काली बदली आयी... और सूरज को आच्छादित कर दिया। विमलयश को इस बदली का आकार रत्नजटी के विमान सा लगा। उसके होठों पर से शब्द सरक गया : 'भाई...! तुम्हारा विमान नीचे उतारो!' मालती का पति पास में ही पौधे को पानी सिंच रहा था... विमलयश की आवाज सुनकर वह दौड़ आया... 'क्या हुआ कुमार? कुछ चाहिए क्या तुम्हें?' विमलयश हँस दिया... नहीं... नहीं... कुछ नहीं हुआ... कुछ चाहिए भी नहीं!' ___ माली चला गया...| विमलयश सुरसंगीत नगर की स्मृतियात्रा में खो गया...। एक के बाद एक दृश्य स्मृतिपटल पर उभरने लगे... भाई... भाभियाँ... गुज़रे हुए दिन... बीते हुए पल... और भी बहुत कुछ। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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