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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ विदा, मेरे भैया! अलविदा, मेरी बहना! AALAKESARITAINERALLE LState ३०. विदा, मेरे भैया! अलविदा, मेरी बहना पEANIXEYEALTHLEMAHENERALAYAryar) .......-Pree t iniax.... रानियों के अनुनय से रत्नजटी ने और ज्यादा तीन महीने सुरसुंदरी को अपने पास रखा | पर वह अपने आप पर पूरा नियंत्रण रख रहा था। कभी भी मन विवश ना हो उठे, इन्द्रियां चंचल न हो जाए, भावुकता में बह ना जाय, इसके लिए वह पूरी तरह सजग रहने लगा था। देखते ही देखते तीन महीने गुजर गये... उसने अपनी चारों रानियों से कहा : 'देखो, दो दिन के बाद मैं बहन को उसके ससुराल छोड़ आनेवाला हूँ... बहन को जो भी उपहार वगैरह देना हो, वह दे देना।' 'हमने सोचा है, बहन को क्या उपहार दिया जाए। 'क्या?' पहली रानी मणिप्रभा ने कहा : 'मैं रूप-परिवर्तिनी विद्या देना चाहती हूँ।' दूसरी रानी रत्नप्रभा ने कहा : 'मैं 'अदृश्यकरणि विद्या देना चाहती हूँ।' तीसरी रानी विद्युतप्रभा ने कहा : 'मैं 'परविद्याच्छेदिनी' विद्या देना चाहती हूँ।' 'और मैं 'कुंजरशतबलिनी' विद्या देना चाहती हूँ.... चौथी रानी रविप्रभा बोली। 'उत्तम... बहुत उत्तम! तुमने काफी बढ़िया भेंट देने की सोची है। ये विद्याएँ बहन के लिए उपकारक सिद्ध होंगी।' रत्नजटी ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा। 'पर ये सारी विद्याएँ सिखलानी तो आप ही को होगी।' 'मैं सिखा दूंगा... तुम निश्चिंत रहो।' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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