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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रीत न करियो कोय १९३ ___ 'अवश्य हो सकता है। हमेशा उस दिशा में प्रयत्न करते रहने से एक न एक दिन ज़रूर सफलता मिलती है। मन की चंचलता, मन की अस्थिरता पैदा होती है, ममत्व में से न? पर पदार्थों पर से ममत्व को हटाने के लिए अन्यत्व भावना कितनी अचूक है... उससे अनुप्राणित होना चाहिए।' ___ 'मेरी आत्मा से भिन्न कोई भी पदार्थ मेरा नहीं है... मैं स्वजनों से परिजनों से... वैभव-संपत्ति से... और शरीर से भी अलग हूँ।' यह चिंतन रोज़ाना करते रहने से ममत्व की मात्रा घटेगी... आसक्ति कम होगी। मन भी धीरे-धीरे आत्मभाव में स्थिर होने लगेगा।' __'ममत्व के संस्कार तो जन्म-जन्म के है न? ऐसे प्रगाढ़ संस्कार क्या थोड़े पलों के इस पवित्र विचार से नष्ट हो जाएँगे?' ___ 'क्यों नहीं होंगे? ज़रूर होंगे। अरे... कई बरसों से इकठ्ठी हुई घास के ढेर को क्या एक चिंगारी ही जलाकर राख नहीं बना देती? तत्त्वचिंतन तो ज्वाला है... अनंत जन्मों के कुसंस्कार एवं वासनाओं के ढेर को जला डालती है। शास्त्रों में ऐसी घटनाएँ हम सुनते हैं... जानते हैं | आत्मध्यान से, परमात्मभक्ति से, अनेक तरह के पापों में डूबी आत्मा भी पूर्णता के शिखर तक पहुँच जाती है। तो फिर हम क्यों पूर्णता के रास्ते पर गति नहीं कर सकते? क्यों प्रगति नहीं कर सकते?' ___ और फिर... तुम्हारा तो कितना गज़ब का पुण्योदय है? तुम्हें तो पिता ही ज्ञानी गुरूदेव के रूप मिले हैं। तुम्हारे पास आकाशगामिनी विद्या है | तुम्हें जब भी तत्त्वचिंतन में या आत्मध्यान में विक्षेप जान लगे... कठिनाई या अड़चन महसूस हो... तब तुम गुरूदेव के पास जाकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हो। ज्ञानमार्ग में एवं ध्यानमार्ग में पथप्रदर्शक गुरूजनों से मार्गदर्शन काफी महत्त्वपूर्ण एवं ज़रूरी है... तुम्हें वह मार्गदर्शन सरलता से उपलब्ध हो सकता है। और, तुम्हें तो पारिवारिक अनुकूलता भी कितनी सहज मिल गयी है! मेरी चारों भाभियाँ कितनी सुशील, संस्कारी एवं गुणों के झरनों जैसी हैं। जो तुम्हारी इच्छा, वह उनकी चाह । जो तुम्हारा इशारा वह उनका जीवन | मैंने तो इन महिनों में अपनी नज़रों से देखा है... परखा है... ये चारों रानियाँ जैसे कि केवल तुम्हारे लिए ही जीती हैं। अलबत्ता, उन्हें पति भी वैसा ही गुणी मेरा भैया मिला है। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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