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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसी के फूल खिले अरसे के बाद! १२७ ___ ठीक है, यदि कोई रास्ता सूझता है यहाँ से भाग छूटने का... तब तो ठीक है... वरना फिर इसी कमरे में कल रात को गले में फाँसी लगा अपने प्राण त्याग दूँगी। शील की सुरक्षा तो किसी भी क़ीमत पर करूँगी ही।' सुरसुंदरी के मन में विचारों का तुमुल संघर्ष चल रहा था। रात भर वह सोचती रही... कभी क्या? कभी क्या? रात बीती । सवेरा हुआ। उसने उठकर श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया। दैनिक कार्य निपटाकर वह बैठी-बैठी परिचारिका की प्रतीक्षा कर रही थी। कमरे के दरवाजे खुले ही रखे थे उसने । परिचारिका दूध लेकर आ पहुंची। 'देवी, मेरे आने में देरी हुई क्या? मुझे तो था कि आप अभी-अभी जगी होंगी... यहाँ तो जल्दी कोई उठता ही नहीं!' 'मैं तो सोयी ही नहीं... फिर जल्दी या देरी से जगने का सवाल ही नहीं उठता।' 'क्या यहाँ पर आपको कोई असुविधा है? आप सोयी क्यों नहीं?' 'अभागिन को असुविधा क्या कोई सुविधा क्या? यहाँ आनेवाली औरत भाग्यशीला हो ही नहीं सकती न?' 'आपकी बात तो सही है... पर यहाँ आकर तो ज़रूर भाग्यवती बन जाएँगी। आपके जैसा सौंदर्य यहाँ है किसका? इस भवन में नहीं पर इस पूरे सोवनकुल में आप जैसा रूप किसी का नहीं होगा!' __'यही तो मेरे दुःखों का रोना है... इस रूप की धूप ने तो मुझे झुलसा रखा है... इस पापी सौंदर्य ने तो मुझे यहाँ ला उलझा दिया है।' _ 'यह तो तुम्हें शुरू-शुरू में ऐसा लगेगा... पर तीन दिन बाद जब यहाँ बड़े राजकुमार और श्रेष्ठीकुमार आएँगे... तब यह दुःख हवा हो जाएगा।' ___ऐसी बात ही मत कर मेरी बहन! मेरे मन में तो मेरे अपने पति के अलावा अन्य सभी आदमी पितातुल्य हैं या भ्रातातुल्य हैं... मैं तो चाहती हूँ, इन तीन दिनों के भीतर ही मुझे मौत आ जाए | मैं नर्क में नहीं जी सकूँगी।' सुरसुंदरी रो पड़ी। परिचारिका के मन में निर्णय हो गया कि 'यह स्त्री किसी ऊँचे खानदान की है... उसने पूछा : 'यदि तुम्हें ऐतराज न हो तो मैं दो - चार बाते पूछना चाहती हूँ तुमसे?' 'पूछ ले न बहन! मेरे जीवन में छुपाने जैसा कुछ है भी नहीं!' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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