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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आखिर, जो होना था! बिखर गयी जमीन पर! उसकी आँखों में भय-भरा विस्मय तैर आया... इतने में तो उसकी निगाह साड़ी के छोर पर लिखे हुए अक्षरों पर गिरी 'सात कौड़ी में राज्य लेना।' __ वह एकदम खड़ी हुई, और किनारे की ओर दौड़ने लगी। दूर ही से उसने देखा तो किनारे पर न तो कोई आदमी था... न ही कोई नाव थी। किनारा बिलकुल सुना था। फिर भी वह दौड़ती रही... किनारे पर आकर खड़ी रही...| दूर-दूर जहाज चले जा रहे थे। क्षितिज पर मात्र बिंदु के रूप में जहाज उभर रहे थे। 'तुम मुझे इस सूने यक्षद्वीप पर छोड़कर चले गये? अकेली... निरी अकेली... औरत को इस डरावने द्वीप पर छोड़ कर तुमने बदला लिया उस बात का? यक्ष की खुराक के लिए मुझे छोड़ दिया। ठीक ही किया तुमने अमर ।' 'बचपन की निर्दोषता... मासूमियत... प्यार भरा गुस्सा, भावुकता... भीतरी प्यार... यह सब कुछ तुमने भुला दिया? मेरे असंख्य प्यार भरे बोल तुम्हें याद नहीं रह सके? एक बार नादानी में कहे गये शायद उन शब्दों को हमेशा याद रखा होगा। दिल में दबा रखा होगा। और उसका बदला लेने के लिए ही मेरे साथ शादी का नाटक किया होगा? मुझे विश्वास में लेने के लिए प्यार का दिखावा किया?' 'अमर... अमर... मेरे अमर! यह तुझे क्या हो गया मेरे अमर? क्या तू तभी से मुझसे नफ़रत करता था? पर मैंने तो हर वक्त तुझे चाहा है। मैंने अपने मनमंदिर में अपने देव के रूप में तेरी पूजा की है। तू मुझे छोड़ गया... फिर भी मैं तुझे नहीं भूल सकूँगी। नहीं अमर, मैं तुझे कैसे भूला दूँ? मैंने तुझसे प्यार किया था । मुझे बदला लेना भी नहीं था... नहीं मैंने कभी किसी बात का बदला माँगा। ___'तेरे प्रति मेरे मन में कितनी ऊँची आशाएँ थी? तुझमें मैंने कितने महान् गुण देखे थे? तुझे मैंने प्यार का सागर माना था। पर मेरी सारी कल्पनाएँ झुठी हो गयी। _ 'अमर, तूने मुझे इस तरह छोड़ दिया? इसकी बजाय तो यदि तूने अपने ही हाथों मुझे ज़हर दिया होता, तो मैं बड़ी खुशी से... अपने प्यार की आबरू की खातिर भी तेरा दिया ज़हर खा लेती। मैं तुझे महान् मानती। पर यह तूने For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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