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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आखिर, जो होना था! इधर सुरसुंदरी जब जगी, तब चार घड़ी बीत गयी थी। उसने अमरकुमार को अपने पास न देखा, तो वह झटके से खड़ी हो गयी और पेड़ों के झुरमुट में अमरकुमार को खोजने लगी! वे ज़रूर कहीं छिप गये हैं... मुझे डराने के लिये। अभी वे पीछे से आकर मेरी आँखों को हथेली से बंद कर देंगे। फिर मुझसे पूछेगे : 'बता, मैं कौन हूँ...?' मैं कहूँगी, 'इस द्वीप के अधिष्ठापक यक्षराज ।' और फिर वे कहकहा लगाकर हँस देंगे... और मेरे सामने आकर खड़े रहेंगे : 'सुंदरी तू कितना सो गयी थी?' सारे वन-निकुंज में सुरसुंदरी ने अमरकुमार को खोजा, पर अमरकुमार न मिला, उसका अता-पता नहीं मिला। तब सुरसुंदरी घबरा गयी | उसने आवाज लगायी... 'अमर! तुम कहाँ हो? स्वामिन्, मेरे पास आओ न? मुझे डर लग रहा है।' कोई जवाब नहीं मिलता है। कोई आहट नहीं सुनायी देती है। सुरसुंदरी पागल-सी होकर वृक्ष-समूह में दौड़ने लगी। इधर-उधर आँखे फेरने लगी : बाहर आकर चारों ओर देखने लगी। कहीं अमरकुमार नहीं दिखा | सुरसुंदरी उसी वृक्ष नीचे आकर खड़ी रह गयी। उसकी आँखों में से आँसू बहने लगे। उसकी छाती घड़कने लगी... 'मेरे स्वामिन्... अमर | तुम कहाँ चले गये हो? मुझे यहाँ सोयी छोड़कर तुम कहाँ चले गये? अब मुझसे नहीं सहा जाता... मेरे देव! तुम चले आओ न? मुझे डराओ मत... आओ न! मेरे अमर... जहाँ हो वहाँ से आ जाओ! ___ उसके पैर काँपने लगे। वह ज़मीन पर बैठ गयी। ‘ऐसे डरावने द्वीप पर पत्नी को अकेला नहीं छोड़ा जाता। ऐसा भी मज़ाक क्या किया जाता है क्या? तुम मेरी जिंदगी हो, मेरे प्राणों के आधार हो, मेरी साँसो के सहारे हो, जल्द चले आओ... और मुझे अपनी बाँहों में ले लो! वर्ना मैं अब नहीं जी पाऊँगी...? क्या मेरे आँसू तुम्हें नहीं दिखते? क्या मेरी आहों से भी तुम्हारा हृदय नहीं पसीजता? आ जाओ नाथ? अमर... अमर... मुझे अपने में समा लो... आओ न?' ___ सुरसुंदरी फफक-फफक कर रोने लगी। आँसुओं से चेहरे को साफ करने के लिए उसने आँचल हाथ में लिया... और वह चोंकी । 'यह क्या?' साड़ी का छोर भारी था | गाँठ लगायी हुई थी। तुरंत उसने गाँठ खोली, सात कौड़ियाँ For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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