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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेष्ठिकुमार शंख ६२ कुछ दिन वहाँ रहकर शंख ने उन लोगों को सद्गृहस्थ का जीवन जीना सिखाया और फिर वहाँ से बिदा ली । वे सब जन शंख को विजयवर्धन नगर तक छोड़ने के लिये साथ-साथ आये। विजयवर्धन नगर के बाहर शंख को सही - - सलामत स्थिति में पहुँचा कर वे वापस लौट गये। शंख ने मन में तरह-तरह की शंका- आशंका को सँजोये हुए अपने नगर की तरफ कदम बढ़ाये । गाँव के बाहर शंख ने पुराने कपड़े उतार दिये । नये सुन्दर वस्त्र धारण किये। अलंकार पहने । बन-ठन कर अपने घर की ओर जाने को निकला । धनश्रेष्ठि की हवेली नगर के मध्यभाग में थी । पुत्र को देखते ही धनश्रेष्ठि की आँखें चौड़ी हो गई। चूँकि इतने लंबे समय से न तो पुत्र का पता लगा था, न ही कोई समाचार थे । अतः उन्होंने शंख के वापस लौटने की आशा करीबकरीब छोड़ दी थी । यकायक पुत्र को सामने सकुशल देखकर सेठ का दिल उछलने लगा। शंख ने पिताजी के चरणों में प्रणाम किया। धनश्रेष्ठि ने शंख को अपने सीने से लगा लिया । शंख की चिरपरिचित आवाज सुनकर सेठानी धनवती भी बाहर निकल आई ... । पुत्र को खुशहाल देखकर धनवती भी नाच उठी। माँ के चरणों में शंख ने प्रणाम किया । धनवती की आँखें खुशी के आँसू बहाने लगी । शंख ने स्नान वगैरह से निपटकर गृहमंदिर में परमात्मा जिनेश्वर देव की पूजा की । १०८ नवकार मंत्र का जाप किया । पिता के साथ बैठकर भोजन किया। धनश्रेष्ठि ने कहा : 'बेटा, तू लंबी मुसाफरी कर के आया है, थोड़ी देर आराम कर ले। शाम को दिन ढले तेरी यात्रा की बातें सुनेंगे।' शंख अपने शयनखंड में चला गया। पंचपरमेष्ठि भगवंत का सुमिरन करते-करते सो गया । ठीक तीन घंटे तक वह सोया रहा। जब वह जागा तब उसे मालूम पड़ा कि सेनापति और राजपुरोहित अपने - अपने परिवार के साथ आकर हवेली में बैठे हुए हैं। इधर राजमहल से भी राजा के दो आदमी शंख को बुलाने के लिये आकर बैठे थे। शंख ने अपने पिताजी से कहा : ' इन राजपुरुषों से आप कह दीजिये कि मैं स्नान वगैरह से निपटकर अभी आधे घंटे में ही महाराजा के पास पहुँचता हूँ ।' धनश्रेष्ठि ने राजपुरुषों को बिदा किया। सेनापति और राजपुरोहित को For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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