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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेष्ठिकुमार शंख मुसाफिरों के साथ शंख अपने गाँव की तरफ आगे बढ़ता है...रात हुई। सब के साथ शंख ने भी उसी जंगल में आराम किया। आधी रात गये अचानक डाकुओं ने आ दबोचा सबको! लूट-मार मचाने लगे। शंख तुरंत ही डाकुओं के पास आया और कहने लगा : 'देखो, तुम्हें तो धन-दौलत से मतलब है ना? ले लो यह मेरा सारा का सारा धन... पर इन निर्दोष-बेगुनाह लोगों को मारो मत...छोड़ दो इन्हे!' __शंख ने अपनी सोने-चाँदी की गठरी रख दी डाकुओं के सामने । इतने में दो-चार डाकू जो दूर खड़े थे... वे नजदीक आये | मशाल के प्रकाश में उन्होंने शंख का चेहरा देखा...'अरे, यह तो हमको जीवनदान दिलानेवाले महापुरुष शंख हैं। अरे भाई...बंद करो लूटना! इन्हें नहीं लूटा जा सकता! राक्षस जैसे उस पल्लीपति के सिकंजे में से इन्हीं महापुरुष ने तो हमको छुड़वाया था। यह तो अपने लिये पूजनीय महापुरुष हैं...।' __काफिले के मुसाफिर भी इकट्ठे हो गये। शंख के प्रति डाकुओं का आदरभाव देखकर वे सब तो ताज्जुब रह गये। डाकुओं ने शंख से कहा : 'ओ हमारे उपकारी...आप हमारे साथ हमारी पल्ली पर पधारो...। करीब ही है...। हम आपकी खातिरदारी करेंगे। हमारी बात आपको माननी ही होगी! हम आपको मेहमान बनाकर ही बिदा करेंगे।' __शंख ने काफिले के मुखिया की इजाजत ली और वह डाकुओं के साथ चल दिया। __शंख ने पल्लीपति मेघ के बंधनों में से जिन दस आदमियों को मुक्त करवाया था, वे इस इलाके में अपना अधिकार जमाकर चोरी-लूट का धंधा कर रहे थे। फिर भी उनके हृदय उपकारी के उपकार भूले नहीं थे। उन लोगों में 'कृतज्ञता' नाम का गुण था। उन्होंने शंख की काफी खातिरदारी की। मेहमानवाजी की। बढ़िया से बढ़िया भोजन करवाया। अलंकार भेंट दिये। अन्य कई कीमती चीजें उपहार के रूप में दी। __ शंख ने उन लोगों को हिंसा, झूठ, चोरी, लूटमार वगैरह छोड़ देने की प्रेरणा दी। उन्हें शंख पर प्रेम तो था ही। शंख के उपकार से वे काफी प्रभावित थे। उन्होंने शंख की बात मान ली। दया धर्म को अपनाया। किसी भी निरपराधी-बेगुनाह, अशरण, निःशस्त्र व्यक्ति की हिंसा नहीं करने की उन सबने प्रतिज्ञा की। शंख की खुशी द्विगुणित हो गई। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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