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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ राजकुमार अभयसिंह पर से सीधा नीचे गिरा... उसकी तलवार उसी के पेट में घुस गयी। खून का फव्वारा छूटा और राजा वहीं पर मर गया। सुबह में जब लोगों को मालूम हुआ कि 'राजा मर गया है', तब लोग काफी खुश हो उठे। दुष्ट और प्रजाभक्षक राजा के मरने से किसे खुशी नहीं होती? मंत्रीमंडल एकत्र हुआ। राजा के मृतदेह का अग्निसंस्कार किया गया। और अब किस को राजा बनाना, उसका परामर्श करने लगे। उसी समय आकाशवाणी हुई : 'ओ मंत्रीगण, सुनो मेरी बात! तुम्हारे प्रिय राजा वीरसेन के राजकुमार अभयसिंह को राजा बनाओ।' मंत्रीमंडल दिव्य वाणी सुनकर चौंक उठा। 'क्या अभयसिंह राजा वीरसेन के पुत्र हैं?' 'हाँ, जब महाराजा वीरसेन युद्ध में मौत के शिकार बने तब मैं उसकी रानी वप्रा अपने एक महीने के बेटे को लेकर जंगल में भाग गई थी। जंगल में अपनी शीलरक्षा करते हुए अपने प्राणों की मैंने बाजी लगाई। राजकुमार को श्रेष्ठि प्रियमित्र ले गये थे। मैं मर कर देवलोक में देवी हुई हूँ। मैंने ही अभयसिंह को अदृश्य होने की विद्याशक्ति दी हुई है।' इतना कह कर देवी अपने स्थान पर चली गई। मंत्रीमंडल ने हर्षोल्लास पूर्वक महोत्सव के साथ अभयसिंह का राज्याभिषेक किया और राजकुमारी कनकवती के साथ शादी भी कर दी। अभयसिंह राजा हो गया फिर भी वह अपने पालक माता-पिता प्रियमित्र सेठ को भूला नही! उनका त्याग नहीं किया। उन्हें महल में रखा... और उनकी उचित सेवा की। ___ अभयसिंह ने बड़े अच्छे ढंग से राज्य का संचालन करना प्रारंभ किया। प्रजा को सुखी एवं समृद्ध बनाने की भरसक कोशिश करने लगा। वह लोकप्रिय राजा हो गया। कुछ बरस बीत गये। एक दिन सुबह का समय था। बगीचे के माली ने आकर राजा को प्रणाम किया और नम्रतापूर्वक निवेदन किया : For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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