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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजकुमार अभयसिंह ४६ हो... इससे क्या फर्क पड़ता है मेरे लिये? जिसने मेरे प्राण बचाये... मेरे लिये अपनी जान हथेली पर रख दी, उसको छोड़ कर मैं यदि दूसरे के साथ शादी की बात सोचूं तो फिर मेरे जितनी बेवफा और कौन होगी? मैं तो उसे मन ही मन अपना पति मान चुकी हूँ।' ___ "ठीक है, जल्दबाजी नहीं करना है। मैं उस प्रियमित्र के लड़के को बुलाकर उसके साथ बात करूँगा, फिर कोई भी निर्णय लेंगे।' वसंतसेना को विदा करके उसने द्वाररक्षक सैनिक को बुलाकर कहा : 'त प्रियमित्र सेठ के घर जा और उसके बेटे अभयसिंह को बुलाकर ला। उसे कहना कि तूने राजकुमारी की रक्षा की है इसलिये महाराजा तेरा सम्मान करना चाहते हैं।' सैनिक प्रियमित्र सेठ के घर पर गया । अभयसिंह घर पर ही था। सैनिक ने अभयसिंह को राजा का संदेश दिया। अभयसिंह को अपनी माँ की बात याद आ गई। उसने सोचा : 'राजा बुला रहा है, मै जाऊँ तो सही... मेरी माँ मेरी रक्षा करेगी।' उसने सुन्दर कपड़े पहने और वह सैनिक के साथ चला। राजसभा में जाकर उसने राजा को नमस्कार किया। राजा ने अभयसिंह को रुबरु देखा। वह चमक उठा... 'यह लड़का एक दिन मुझे मार डालेगा?' उसे अभयसिंह का डर तो सता ही रहा था। ___ उसने तुरन्त सेनापति को आज्ञा की : 'अभयसिंह को आज की रात यहीं पर रोके रखना है।' सैनिकों ने तुरन्त अभयसिंह को घेर लिया । अभयसिंह वैसे तो सावधान ही था। पलक झपकते ही वह अदृश्य हो गया। सैनिक तो एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। राजा भी स्तब्ध हो गया। उसे भारी चिंता होने लगी : 'यह दुष्ट अभयसिंह मेरी राजकुमारी को उठाकर ले जायेगा।' राजा उस दिन राजकुमारी के पलंग के पास जाकर सोया । आधी रात होने पर राजा एकदम जाग उठा... हाथ में खुली तलवार लेकर वह दौड़ा.. अरे दुष्ट, खड़ा रह... मेरी कुमारी को तू कहाँ ले जा रहा है? मैं तुझे मार डालूँगा... ओ शैतान!' राजा को खयाल नहीं रहा कि वह पहली मंजिल पर सोया हुआ है। सीढ़ी For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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