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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजकुमार अभयसिंह ३६ साथ करने लगा। लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। धीरे-धीरे उसने काफी रुपये कमाये। शादी भी की। सभी का प्रेम प्राप्त किया। धर्म के प्रभाव से क्या नहीं मिलता है दुनिया में? सब कुछ मिल जाता है... यदि हम निष्ठापूर्वक धर्म का पालन करें तो। एक दिन भद्रक की मृत्यु हो गयी। श्वेता नाम का नगर था। वहाँ के राजा का नाम था वीरसेन । उसकी रानी का नाम था वप्रा । भद्रक मरकर रानी वप्रा के वहाँ बेटे के रूप में पैदा हुआ। वह जब माँ के गर्भ में था तब वप्रारानी ने पराक्रमी शेर का सपना देखा था। रानी की खुशी का पार नहीं रहा। जब पुत्र का जन्म हुआ तो राजा-रानी ने बड़े ठाठ-बाठ से जन्म की खुशियाँ मनाई। पर जब वह राजकुमार एक महीने का हुआ तब एक भयंकर घटना हुई। राजा वीरसेन के कट्टर दुश्मन राजा मानसिंह ने बड़ी भारी सेना लेकर श्वेतानगरी पर धावा बोल दिया। दोनों राजाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। राजा वीरसेन भी बहादुर था, पर किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया और वीरसेन युद्ध के मैदान में ही मारा गया । राजा मानसिंह ने श्वेतानगरी पर अपना अधिकार जमा दिया। रानी वप्रा, अपने एक महीने के राजकुमार को अपनी गोद में छुपाकर गुप्त रास्ते से निकलकर जंगल में भाग गई। ___ मनुष्य चाहे जहाँ जाये पर उसके पाप-पुण्य तो आखिर उसके साथ ही रहते हैं...। आगे-पीछे चलते हैं...| जंगल में रानी को एक सैनिक ने देख लिया। रानी का सुन्दर सलोना रूप देखकर उसका मन पापी हो गया। इधर सैनिक को अपनी ओर ताकता देखकर रानी डर के मारे सिहर उठी। उसे अपनी इज्जत की चिंता थी... उसे अपने लाड़ले बेटे की फिक्र थी। सैनिक ने रानी के पास आकर कहा : 'तू चिंता मत कर... मैं तुझे मार नहीं डालूँगा। मैं तुझे अपनी औरत बनाऊँगा! तुझे जंगल में इस तरह भटकना भी नहीं पड़ेगा... मैं तुझे मेरे घर की रानी बनाकर रखूगा।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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