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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद २६ तरह राज्य करते-करते मेघनाद और मदनमंजरी के जीवन के एक लाख बरस बीत गये! समय कहाँ बीत गया, पता ही नहीं लगा। ___ एक दिन राज्य के उपवन के माली ने आकर राजा मेघनाद से निवेदन किया : 'महाराजा, अपने उपवन में श्री पार्श्वदेव नाम के महान ज्ञानी गुरुदेव पधारे सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हो उठा। उसने माली को सोने का हार भेंट दे दिया । राजा के तन-मन में खुशी की लहर दौड़ रही थी। राजा ने रानी को समाचार दिया। नगर में समाचार भिजवा दिये। ___ अपने पूरे राजपरिवार के साथ राजा मेघनाद आचार्य पार्श्वदेव के दर्शनवंदन करने के लिये उपवन की ओर चला। गुरुदेव पार्श्वदेव अवधिज्ञानी महात्मा थे। वे मनुष्य के भूतकाल को और भविष्यकाल को अच्छी तरह जान सकते थे, बता सकते थे। राजपरिवार के साथ राजा ने अत्यंत भावपूर्वक गुरुदेव को वंदना की और सभी विनयपूर्वक गुरुदेव के समक्ष बैठे | गुरुदेव ने मधुर वाणी में धर्म का उपदेश दिया। उपदेश पूर्ण होने के पश्चात् राजा मेघनाद ने खड़े होकर, सर झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर, गुरुदेव से पूछा : __'गुरुदेव, गत जन्म में मैंने ऐसा कौन-सा पुण्य किया था कि जिससे मुझे इतना विशाल राज्य मिला और सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाला दिव्य रत्नकटोरा मिला?' गुरुदेव ने कहा : 'राजन्, इसके लिये तुझे तेरे गत जन्म की कहानी सुनानी होगी।' 'कृपा कीजिये गुरुदेव...आप तो ज्ञानी हैं... मुझे कहिए मेरे गत जन्म की कहानी। ७. विवेक सबसे बड़ा गुण 'मेघनाद...अच्छी तरह मन लगा कर सुनना... मैं तेरे पूर्वजन्म की बात बता रहा हूँ। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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