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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद २४ पुण्यकर्म का सुख भोगना है। एक लाख बरस तक तुझे संसार में जीना होगा। फिर तू इसी जीवन में दीक्षा लेगा और सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष को प्राप्त करेगा। अभी तो गृहस्थजीवन में जीते हुए बारह व्रतों के पालन का धर्म तू अंगीकार कर ले, जिस से तेरे थोड़े-थोड़े कर्म नष्ट हो जायेंगे।' मदनमंजरी ने कुमार से कहा : 'स्वामिन, मैं भी बारह व्रत अंगीकार करना चाहती हूँ।' मेघनाद और मदनमंजरी ने बारह व्रत अंगीकार किये। प्रसन्नमन होकर राजा ने गुरुदेव को वंदना की और राजकुमार के साथ नगर की तरफ प्रस्थान किया। __ भोजन वगैरह से निवृत्त होकर राजा ने राजपुरोहित को बुलवाया। राजा ने पुरोहित से कहा : 'अब मैं शीघ्र ही दीक्षा लेना चाहता हूँ... अतः जल्दी से जल्दी जो शुभ मुहूर्त आता हो... उसमें कुमार का राज्याभिषेक करना है। ऐसा श्रेष्ठ मुहूर्त निकालिये कि उसी दिन मैं राजकुमार का राज्याभिषेक करके आत्मकल्याण के मार्ग पर प्रस्थान कर सकूँ! और कुमार भी प्रजा का अच्छी तरह पालन करे।' राजपुरोहित ने पंचांग खोला । मीन-मकर-मेष-कुंभ...गिना । कुछ गिनतियाँ लगाई मन ही मन और अक्षयतृतीया का श्रेष्ठ मुहूर्त निकाला। कुछ ही दिन बाकी थे। जोरों की तैयारियाँ होने लगी। इधर रानी कमला ने भी राजा से विनयपूर्वक निवेदन किया : 'स्वामिन, आप आत्मकल्याण करने के लिये तत्पर बने हैं... तो फिर मैं इस संसार में रह कर क्या करूँगी? मैं भी आप के साथ संयम का मार्ग ग्रहण करूँगी।' राजा लक्ष्मीपति की आँखे हर्ष के आँसुओं से भर आई। उन्होंने रानी को अनुमति दी। अक्षयतृतीय के दिन राजकुमार मेघनाद का राज्याभिषेक कर दिया गया और उसी दिन राजा-रानी ने संसार त्याग करके संयम का मार्ग ग्रहण किया। दीक्षा लेकर राजा-रानी ज्ञान-ध्यान और तीव्र तपश्चर्या करने लगे। उनकी आत्मा पर लगे पापकर्म नष्ट होने लगे। सभी कर्मों का नाश करके राजा-रानी की आत्माओं ने मोक्ष को प्राप्त किया। उन्हें परम सुख की प्राप्ति हुई। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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