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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १३७ उपाय बता दिया। अजानंद ने सुबुद्धि मंत्री को एक घोड़ा देकर उसे अपने साथ ही ले लिया। सेना के साथ चंद घंटों में ही अजानंद चंद्रानना नगरी के बाहरी इलाके में पहुँच गया और वहाँ पर अपना पड़ाव डाल दिया। राजा चंद्रापीड़ ने नगरी के दरवाजे बंद करवा दिये। एक लाख की सेना के साथ आये हुए बब्बर शेर जैसे अजानंद से अब चंद्रापीड़ घबरा उठा। उसे मौत की पदचाप सुनाई देने लगी। 'कल पन्द्रहवाँ दिन है। क्या यह अजानंद कल मेरा वध कर डालेगा? नहीं... नहीं...मैं अपनी सेना के साथ उसका डटकर मुकाबला करूँगा। मेरे पराक्रम से उसको धूल चाटा कर मार डालूँगा।' उसने सेनापति को बुलाकर सैन्य को सज्ज करने का आदेश दे दिया। रात हो चुकी थी। सुबुद्धि मंत्री ने गुप्तमार्ग से नगर में प्रवेश किया। वह सर्वप्रथम सेनापति से मिला । सेनापति से कहा : 'तुम जानते हो ना कि देवी ने क्या कहा था? सत्य ज्योतिषी ने क्या कहा था? एक लाख की सेना लेकर तूफान की तरह अजानंद धंस आया है। देवी और ज्योतिषी का भविष्य कथन सच हुआ है। अजानंद कल सबेरे युद्ध में अवश्य राजा को मार डालेगा। इसलिए यदि तुम्हें जिन्दा रहना हो तो अजानंद के पक्ष में मिल जाओ! हमेशा उगते सूरज की पूजा करनी चाहिए। मैं तो तुम्हारी भलाई के लिये कह रहा हूँ। मेरे मन में तुम्हारे लिए सहानुभूति है...इसलिए तो तुम्हें कहने आया हूँ। भविष्य का लाभ देखना ही समझदारी का काम है...| बोलो...तुम्हारी क्या इच्छा है?' सेनापति को सुबुद्धि मंत्री की बात में सच्चाई नजर आयी। उसने अजानंद के पक्ष में शामिल होने के लिए हामी भर ली। मंत्री ने कहा : 'तुम सब तैयार रहना। अजानंद यहाँ आएँगे तब मैं तुम्हें उनके साथ मिलवा दूंगा।' __ मंत्री ने अजानंद को जाकर सारी बात बता दी। दूसरे दिन सबेरे अजानंद शस्त्रसज्ज होकर हाथी पर बैठा। उसने सेना को आज्ञा की : ___ 'नगर के द्वार तोड़ कर नगर में प्रवेश करो।' हाथियों की सेना ने नगर के दरवाजें तोड़ डाले। सेना ने नगर में प्रवेश करते ही द्वाररक्षकों को यमसदन पहुँचा दिया। अजानंद ने वहाँ पर अपने सैनिक लगा दिये। वहाँ से शीघ्र ही निकलकर वह नगर के चौक में पहुँचा। वहाँ राजा चंद्रापीड़ के सेनापति, प्रधान एवं सैनिकों ने जयजयकार के साथ अजानंद का स्वागत किया। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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