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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१ पराक्रमी अजानंद कहाँ मिलनेवाला था? आनन-फानन मैं पिंजरे में से बाहर निकला और पंख फैलाकर आकाश में उड़ गया। __ नगर में राजकुमार विमलवाहन है नहीं। वह पागल हाथी न जाने राजकुमार को कहाँ से कहाँ ले गया क्या पता? नगर में सन्नाटा छाया हुआ है...नगर के बाहर दुश्मन राजा घेरा डाल कर जमे हुए हैं। नगर के भीतर महामंत्री गहन चिंता में डूबे हुए हैं। अब क्या होगा... परमात्मा ही जानता है!' तोते ने बात पूरी की। राजकुमार विमलवाहन अपने पिता की मौत का समाचार सुनकर विह्वल हो उठा। उसका मन दुःख से भर आया। वह अपने आप पर काबू नहीं रख पाया...बेहोश होकर मंदिर के भीतर जमीन पर गिर गया। __ जैसे ही कुमार जमीन पर गिरा तो 'धबाक...' की आवाज हुई...और अजानंद की आँख खुल गई। उसने पास में राजकुमार को सोया हुआ नहीं देखा तो वह खुद खड़ा होकर मंदिर में खोजने लगा। राजकुमार को चौकी के पास बेहोश गिरा देखकर अजानंद चौंका | तुरंत ठंढ़े पानी के छींटे मार कर उसकी बेहोशी दूर की। उसे सहारा देकर अपनी जगह पर ले आया। कुमार तो फफक-फफक कर रो पड़ा। अजानंद ने कुमार की पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा : 'क्या हुआ भाई? तू इतना परेशान क्यों है? तू गिर गया...रो रहा है...आखिर बात क्या है?' विमलवाहन ने सिसकियाँ भरते हुए तोते की कही हुई सारी बात अजानंद को कह सुनाई। अजानंद ने कुमार को सान्त्वना दी। ढाढ़स बंधाया। और उसने कहा : 'कुमार, तू पराक्रमी है...शोक और रोना-धोना छोड़ दे! तेरे पिता युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए हैं...किसके माता-पिता हमेशा के लिए जीते हैं? आखिर एक न एक दिन तो सब को मरना होता है! उदय और अस्त, यह तो इस सृष्टि का क्रम है-जीवन और मृत्यु शाश्वत् है...सुख के बाद दु:ख यह चक्र चलता ही रहता है | आदमी का भाग्य जब तक जगता है...तब तक ही सुख झिलमिलाता है...' 'कुमार, तू धैर्य रख । दुःख के गहरे सागर को भी महान व्यक्ति धैर्य के सहारे तैर जाते हैं!' कुमार का रोना बंद हुआ। उसने अजानंद से पूछा : For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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