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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १३० लटके-मटके करता ही नहीं तो मेरी यह नौबत नहीं आती! मुझे बंधन में बँधना नहीं पड़ता! ज्यादा होशियारी या ज्यादा गुण कभी इस तरह दुःखदायी हो उठते हैं! रानी तो बड़ी प्यारी है...मुझे मनचाही खुराक देती हैं...ताजे-ताजे अनार के दाने...लाल-लाल, हरी-हरी...मिर्ची...अमरुद! पर वे मनचाहे भोजन मेरे लिए अनचाहे हो गये! मुझे रोजाना नये-नये श्लोक सिखाये जाते पर मुझे पिंजरे में से बाहर निकालने का कोई नाम नहीं लेता था! ___ एक दिन ऐसा हुआ, राजा का हाथी पागल हो उठा। ऐसा पगलाया हाथी कि मोटी-मोटी जंजीरें तोड़कर भाग निकला। जो महावत हाथी को पकड़ने के लिये गये...हाथी ने उनको सूंड़ से पकड़कर घास की गठरी की तरह दूर उछाल फेंके! जो लोग उसके रास्ते में आये उन्हें उस दैत्य ने कुचल दिया...और नगर को छोड़कर जंगल की तरफ दौड़ा। हाथी राजा का प्रिय था। राजकुमार विमलवाहन ने हाथी को वश मे करने का सोचा । और दौड़ते हुए हाथी पर छलाँग लगा कर वह चढ़ बैठा। हाथी को अंकुश में लेने के लिए उसने भरसक कोशिश की पर हाथी तो पागलपन में चूर होकर बीहड़ जंगल में दौड़ता रहा। यह समाचार राजा महासेन को दे दिये गये | हाथी राजकुमार को ले गया यह जानकर महासेन राजा बेहोश हो गये। उन्हें होश में लाया गया... पर वे शून्यमनस्क होकर बैठ गये। राजकाज में उनका मन अब लगता नहीं था। राजकुमार के बगैर उनका जीना जहर सा हो गया। ___ महाराजा की इसी बेबस स्थिति का लाभ उठाकर उनके दुश्मन राजाओं ने उनके राज्य पर हमला कर दिया। बड़ी भारी संख्या में सैनिकों को लेकर धावा बोल दिया । महासेन राजा नगर एवं प्रजा की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में उतरे। पर युद्ध में उनकी हार हुई और वे मृत्यु के शिकार हुए। ___ महाराजा की मौत के समाचार नगर में फैलते ही प्रजाजनों के शोक का पार न रहा। उन्हें सुरक्षा का भय भी सताने लगा। पर महामंत्री विचक्षण एवं धीरजवाले हैं। उन्होंने तुरत नगर के सभी दरवाजे बंद करवा दिये। नगर के किले पर हजारों सैनिकों को शस्त्रसज्ज करके एहतियात के तौर पर लगा दिये। नगर की सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर दिया। नगर के दरवाजे तोड़कर अंदर घुसने की ताकत तो दुश्मनों में थी नहीं। इधर महल में भी हाहाकार मच गया । दास-दासी सभी रोने-कलपने लगे। एक दासी ने दाना चुगाते समय मेरा पिंजरा खुला रख दिया...मुझे ऐसा मौका For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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