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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १२० नृत्य का प्रारंभ किया। परमात्मा की भक्ति का अद्भुत वातावरण वहाँ पर बन गया । भ्रमर के रूप में रहा हुआ अजानंद एक जगह पर स्थिर बैठकर देवियों के नृत्य देखने लगा। वह मुग्ध हो उठा। ऐसे अद्भुत दृश्य उसने पहले कभी नहीं देखा था। इन्द्र ने 'तुंबरु' नाम के देव को गीत गाने की आज्ञा की। उस समय अजानंद को विचार आया कि 'मैं यदि अपनी कला बताकर यहाँ प्रगट हो जाऊँ तो? चूँकि अप्रसिद्ध एवं अनजान आदमी का जन्म जानवर की भाँति अर्थविहीन है। मुझे अपनी कला का परिचय देना ही चाहिए।' उसने गुटिकाप्रयोग के द्वारा तुरंत अपना रूप बदल दिया। वह खुद 'तुंबरु' देव बन गया और गीत गाने की शुरुआत की। शास्त्रीय राग को अपने कंठ की मधुरता से ऐसा गाया कि इन्द्र के साथ अन्य देव-देवी भी झूम उठे! इन्द्र अपने मन में ऐसा प्यारा-प्यारा मधुर गीत सुनकर सोचता है : 'शायद यह कोई नया तुंबरुदेव आया लगता है।' इन्द्र ने उस नये तुंबरु देव को अपने पास बुलाया इनाम देने के इरादे से। तुरंत अजानंद ने अपना रूप परिवर्तन कर दिया और अपने मूल रूप मे आ गया। मनुष्य के रूप में वह इन्द्र के सामने जाकर खड़ा रहा। पृथ्वी पर का एक सामान्य आदमी को अपने सामने खड़ा देखकर इन्द्र एवं सभी देव-देवी विस्मय से ठगे-ठगे से रह गये । इन्द्र ने पूछा : 'अरे! तू कौन है? यहाँ कहाँ से आया है?' अजानंद ने बड़ी निर्भयता से अपने परिभ्रमण की रसमय बातें कहनी प्रारंभ की। देवराज इन्द्र तो अजानंद की बातें सुनकर प्रसन्न हो उठा। उसके गुण एवं पराक्रम पर इन्द्र मुग्ध हो गया । इन्द्र ने अजानंद को दिव्य वस्त्र दिये...दिव्य अलंकार-गहने दिये। अजानंद ने दोनों हाथ जोड़कर इन्द्र से कहा : 'ओ देवों के राजा! आपका रूप-सौन्दर्य कितना अद्भुत है! आपका तेज कितना अपूर्व एवं दीप्तिमान है। कितना विपुल वैभव है आपके पास...और ये देवियाँ तो सुंदरता के सागर सी लग रही हैं...और देवेन्द्र...यह सारी समृद्धि आपको कैसे प्राप्त हुई? अपूर्व स्वर्ग, अनुपम आवास, तेजस्वी देह...अद्भुत शक्ति, और सौन्दर्य के खजाने जैसी इन्द्राणी...यह सब आपको कैसे मिला? किसने दिया यह सब आपको? आप मुझे यह बताने की कृपा करेंगे।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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