SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद ११६ ___ अजानंद अपने मन में सोचता है : 'सचमुच महाराजा कितने दयालु हैं एवं परोपकारी हैं। मेरे जैसे गरीब और छोटे मित्र के लिए भी उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाते हुए सरोवर में छलाँग लगा दी। मुझे कहीं से भी महाराजा की तलाश करनी चाहिये। यदि मैं व्यंतरेन्द्र के पास जाकर उनसे पूछंगा तो जरुर वे मुझे महाराजा का पता बतायेंगे।' __ परन्तु अजानंद ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी। उसने सरोवर में कूदकर व्यंतरेन्द्र के पास जाने का सोचा, जबकि वहाँ पर उसे सहायता करनेवाला कोई भी व्यंतरदेव हाजिर नहीं था। जैसे ही अजानंद सरोवर में कूदा, एक मगरमच्छ ने उसे अपने मुँह में जकड़ लिया और निगलने लगा। कमर तक वह निगल गया। पर अजानंद की कमर पर अग्निवृक्ष के फल का चूर्ण बंधा हुआ था। जैसे ही वह चूर्ण मगरमच्छ के पेट में गया उसी समय मगरमच्छ मनुष्य बन गया लेकिन सरोवर के पानी के प्रभाव से अजानंद का आधा शरीर बाघ का बन गया। इस तरह उसका आधा शरीर मनुष्य का और आधा शरीर बाघ का बन गया। इतने में उस सरोवर के अन्दर पानी की लहरे उँची-ऊँची उठने लगी और एक लहर ने अजानंद को किनारे फेंक दिया। वह बेहोश हो गया था। किनारे पर ढेर होकर पड़ा रहा। राजा के सैनिक तो सरोवर से काफी दूर चले गए थे। फिर भी अजानंद का भाग्य कुछ तेज था। सरोवर का वह किनारा व्यंतर देवियों के लिए घूमने-फिरने की जगह थी। संध्या के समय कुछ देवियाँ उधर घूमने निकलीं। बहुत आश्चर्य हुआ। अरे! यह कैसा विचित्र प्राणी है। इसका आधा शरीर बाघ का है और आधा शरीर मनुष्य का है। चलो, हम इस प्राणी को अपनी रानी के पास ले चलें। सभी देवियाँ सहमत हो गयी और अजानंद को उठाकर सर्वांगसुन्दरी देवी के सामने ले जाकर रख दिया। दुर्जय राजा सर्वांगसुन्दरी के समीप बैठा हुआ था। दोनों आश्चर्य से अजानंद के आधे बाघ और आधे मानववाले शरीर को देखते ही रहे । इतने में अचानक दुर्जय राजा को चंडिकादेवी के द्वारा उसके कान में कही गयी बात याद आ गयी। 'तू तेरे मित्र को छह महीने बाद मानव-व्याघ्र के रूप में देखेगा।' उसने तुरन्त देवी के द्वारा दी हुई दिव्य औषधि को पानी में मिलाकर वह पानी अजानंद पर छींटा। कुछ ही पलो में मनुष्य बने हुए मगरमच्छ के मुँह मे से अजानंद बाहर निकल आया । मगरमच्छ मानव रूप में आ गया। इधर अजानंद का बाघ रूप For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy