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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७ पत्र ९ संसारयात्रा के दौरान मैं देवलोक में देव भी हुआ, वहाँ पर भी मुझे नहीं लगता है कि मैंने सच्चे मन से तीर्थंकर भगवंतों के जन्मकल्याणक वगैरह पवित्र प्रसंगों में एवं समवसरण में जाकर परमात्मा के दर्शन किये हों...! तन्मय होकर तीर्थंकर भगवंत की देशना सुनी हो! पशु-पक्षी की योनि में तो परमात्मदर्शन होने की आशा ही कहाँ? मात्र आँखों से देखना, वह दर्शन मुझे अभिप्रेत नहीं है। अन्तरात्मा बनकर परमात्मा के दर्शन करूँ-वह मुझे अभिप्रेत है। बहिरात्मदशा में तो कई बार देव बनकर या पशु-पक्षी बनकर दर्शन किये होंगे... परन्तु वे दर्शन महत्व के नहीं होते। नरकगति में परमात्म-दर्शन की कल्पना भी नहीं कर सकते! अपार वेदनाओं में, घोर कदर्थनाओं में परमात्मदर्शन की संभावना ही कहाँ? हालाँकि देवगति और नरकगति में जीवों को सम्यग्दर्शन हो सकता है, सम्यग्दर्शन वाली आत्मा अन्तरात्मा होती है, बहिरात्मा नहीं होती, फिर भी जो ‘परमात्म दर्शन' आनन्दघनजी को यहाँ पर अभिप्रेत है, वह परमात्म-दर्शन वहाँ संभव नहीं है। ___ मनुष्य जन्म भी अनेक बार मिला है, संसार के अनन्त परिभ्रमण काल में, परन्तु अनार्य देश में अनार्य लोगों के परिवारों में मिला हुआ मनुष्य जन्म भी किस काम का? आर्य देश में मनुष्य जन्म मिला हो परन्तु परिवार अनार्य हो, धर्महीन हो, पापप्रचुर हो, तो किस काम का मनुष्य जन्म? वैसे मनुष्य जीवन में परमात्मदर्शन पाने की कोई संभावना नहीं होती। __अपर्याप्त-अवस्था तो ऐसी मूढ़ अवस्था है कि जहाँ आत्मा को सुध-बुध ही नहीं होती...फिर परमात्मा के दर्शन की तो बात ही कहाँ! अपर्याप्त अवस्था होती है, गर्भावस्था के प्राथमिक क्षणों में| जहाँ मन नहीं होता है। शरीर भी बिन्दु के रूप में होता है। __ पर्याप्त-अवस्था हो, यानी शरीर, इन्द्रियाँ, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन तैयार हो गया हो, परन्तु सब अस्पष्ट होता है, आभास मात्र होता है...तब तक [गर्भावस्था में] परमात्मदर्शन की कोई शक्यता नहीं होती है। हे सखी चेतना! मैं इन सभी अवस्थाओं में से गुजरा हूँ, कहीं पर भी मुझे परमात्मा के उपशमरस-भरपूर मुखचन्द्र का दर्शन नहीं हुआ है। अब, इस उबुद्ध अवस्था में तो मुझे दर्शन करने दे | For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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