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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २२ १९२ ११ अंग १२ उपांग वर्तमान में इन ४५ सूत्रों को '४५ आगम' कहते हैं। प्राचीन हस्तलिखित प्रतों में ६ छेद ये आगम आज भी उपलब्ध हैं। आज १० प्रकीर्णक इन आगमों का साधुपुरुष अध्ययन भी ४ मूल करते हैं। १ नंदीसूत्र १ अनुयोग-द्वार ४५ सूत्र चेतन, यह बात विस्तार से इसलिये बता रहा हूँ, चूँकि श्रीमद् आनन्दघनजी 'समयपुरुष' की आराधना करने का आग्रह करते हैं। जिसकी आराधना करनी है, उसका ज्ञान तो होना ही चाहिए। ___ जो लोग 'समयपुरुष' को नहीं मानते हैं, अथवा मात्र 'सूत्र' को ही मानते हैं, उनको चेतावनी देते हैंजे छेदे ते दुर्भव रे... जो लोग नियुक्ति, भाष्य वगैरह नहीं मानते हैं, यानी उन अंगों का छेद उड़ाते हैं, उनको कहते हैं, 'तुम दुर्भवी हो!' यानी 'तुम्हारी आत्मा भारी पापकर्मों से बंधी हुई है। निकट के भविष्य में तुम्हारा मोक्ष होनेवाला नहीं है।' श्री आनन्दघनजी का यह पुण्यप्रकोप है। चेतन, २५-३० वर्षों से तो, ३२ आगमों की मान्यतावाले लोग जो नये आगम छपवाते हैं, उन में जहाँ मंदिर-मूर्ति की बातें हैं, उनको निकाल दी हैं और जो बात नहीं है आगम में, डोरा डालकर मुँहपत्ति मुँह पर बाँधने की, नये आगमों में घुसेड़ दी है। यह छोटा अपराध नहीं है, बड़ा अपराध है...। परंतु कौन उनको रोकें? मुद्रा बीज धारणा अक्षर, न्यास अर्थ-विनियोगे रे जे ध्यावे ते नवि वंचीजे, क्रिया-अवंचक भोगे रे... चेतन, 'समयपुरुष' बताने के बाद योगीराज अब 'ध्यानपुरुष' बता रहे हैं। यह एक प्राचीन ध्यानप्रक्रिया है। योगीराज ने मात्र यहाँ ध्यान के छह अंग बताये हैं और गुरुगम से ध्यानप्रक्रिया जानने का निर्देश किया है। मैं यहाँ For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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