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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २२ १९१ कुछ महामनीषी आचार्यों ने नियुक्ति, चूर्णि और भाष्य को आधार बनाकर सूत्रों पर विस्तार से टीकायें लिखी हैं। टीका को 'वृत्ति' भी कहते हैं। टीकायें लिखनेवाले असाधारण विद्वत्ता एवं परंपरागत अनुभवों के धारक महापुरुष थे। वे कोई गच्छ के या संप्रदाय के दुराग्रही नहीं थे। श्री जिनशासन के प्रति उनकी पूर्ण निष्ठा होती थी। ___ कुछ प्रज्ञावंत महापुरुषो ने सूत्र, नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीकाओं का अध्ययन कर, चिन्तन-मनन कर, भिन्न-भिन्न विषय पर स्वतंत्र ग्रंथों की रचनाएँ की। अपने ज्ञानानुभव, आत्मानुभव को भी ग्रन्थों में भरा | इतने वे सावधान थे कि मेरा अनुभवज्ञान शास्त्र-निरपेक्ष तो नहीं है न? ऐसी परीक्षा करते थे। शास्त्रनिरपेक्ष अनुभव गलत होता है। सभी अनुभव सच्चे ही हों, ऐसा नियम नहीं है। कुछ अनुभव सही हो सकते है, कुछ अनुभव गलत हो सकते हैं। गलत अनुभवों को छोड़ देने चाहिए। __ श्री आनन्दघनजी कहते हैं : ‘समयपुरुष' यानी शास्त्र-पुरुष के ये छह अंग हैं। १. सूत्र, २. नियुक्ति, ३. भाष्य, ४. चूर्णि, ५. टीका और ६. परंपरागत अनुभव । 'समयपुरुष' को माननेवालों को उनके छह अंगों को मानने चाहिए | ० दिगम्बर संप्रदायवाले इस 'समयपुरुष' को नहीं मानते हैं। यानी छह में से एक भी अंग नहीं मानते हैं। ० स्थानकवासी संप्रदायवाले मात्र 'सूत्र' को ही मानते हैं, शेष पांच अंगों को नहीं मानते हैं। सूत्र भी मात्र ३२ ही मानते हैं। ० तेरापंथी संप्रदायवाले भी मात्र 'सूत्र' मानते हैं। वे भी ३२ सूत्र ही मानते ० श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, जो कि भगवान महावीर स्वामी से लगाकर एक अविच्छिन्न परंपरा का संघ है, वह समयपुरुष को पूर्णरूप से मानता है। सभी छह अंगों को मानता है। ४५ सूत्रों को मानते हैं। चेतन, तेरे मन में प्रश्न पैदा होगा कि बारह अंग के ग्यारह अंग हुए, और ग्यारह अंग के पैतालीस सूत्र कैसे हो गये! बताता हूँ- श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात १८० वर्ष व्यतीत होने पर १२ अंगो का ज्ञान भी भूला जा रहा था। तत्कालीन श्रुतधर आचार्यों ने मिलकर परामर्श किया। मौखिक श्रुतज्ञान को लिखा गया। उस समय विषयों का विभागीकरण किया गया For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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