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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १९ १६० नय [निश्चयनय-द्रव्यार्थिक नय] की दृष्टि से [थापना ] आत्मा को देखना होगा। हृदय में शुद्ध नय की स्थापना करनी होगी । शुद्ध नयदृष्टि से आत्मशुद्धि के मार्ग पर चलने पर कोई दुविधा साथ नहीं रहेगी । शुद्ध नयदृष्टि से 'अद्वैत' की प्राप्ति होती है। कोई द्वैत नहीं टिक सकता वहाँ । एक अद्वितीय आत्मा ही बचती है वहाँ । वह है अरनाथ भगवंत का परम धर्म यानी स्व- समय ! परम धर्म की, स्व-समय की निर्विकल्प समाधि की .... अद्वैत की बात करने के पश्चात् श्री आनन्दघनजी अपनी वर्तमान आत्मस्थिति का निवेदन करते हैंएक पखी लख प्रीतनी तुम साथे जगनाथ, कृपा करीने राखजो, चरणतले ग्रही हाथ.... हे जगनाथ, अभी तो मैं द्वैतभाव में हूँ, 'पर - समय' की परछाई मेरी आत्मा पर छायी हुई है.... चूँकि मैं आपके साथ प्रेम में हूँ! आपके साथ एकपक्षीय प्रीति, मेरा लक्ष्य है । आपकी मेरे प्रति प्रीति नहीं है, मैं जानता हूँ, चूँकि आपकी प्रीति को वहन करने की मेरी पात्रता नहीं है । भले, आप मेरे साथ प्रेम न करें, परंतु दया तो कर सकते हो न? प्रेम नहीं तो दया- कृपा सही! मेरा हाथ पकड़ना [ग्रही ] और आपके चरणों में [ चरणतले] मुझे रखना। ताकि मैं अनात्मभावों में चला न जाऊँ । आनन्दघनजी परमात्मा से कहते हैं- भले आप मुझ से प्रेम नहीं करें, मैं तो आपके प्रेम में हूँ ही। मेरा प्रेम तो बना ही रहेगा । आप दयासिन्धु कहलाते हैं, तो मेरे ऊपर दया तो बरसा सकते हो ! बस, आपके चरणों में रहूँगा और प्रेम के गीत गाता रहूँगा! श्री अरनाथ भगवंत गृहस्थजीवन में चक्रवर्ती थे । छ खंड की ठकुराई छोड़कर उन्होंने चारित्रधर्म अंगीकार किया था और वे तीर्थंकर बने थे । इस चक्रवर्तीत्व को ध्यान में रखते हुए वे कहते हैं चक्री धरम-तीरथ तणो तीरथ - फल तत्तसार, तीरथ सेवे ते लहे आनन्दघन निरधार.... हे भगवंत! आप धर्मतीर्थ के चक्रवर्ती हैं । आप गृहस्थावस्था में चक्रवर्ती थे, तीर्थंकर की अवस्था में भी चक्रवर्ती हैं। आप सर्वज्ञ-वीतराग बने, आपने धर्मतीर्थ की - जिनशासन की स्थापना की । यह For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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