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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमनाथ महादेव प्रगट हुए ॥ १२. सोमनाथ महादेव प्रगट हुए NYON जा जैसे देवसभा में इन्द्र गौरव प्राप्त करता है...वैसे गुजरात की राजसभा में राजा कुमारपाल का रुतबा था । राजसभा में सामन्तराजा, मंत्रीगण, सेनापति, राजपुरोहित सभी अपनेअपने आसन पर आसीन थे। गुरुदेव श्री हेमचन्द्रसूरिजी भी राजा के समीप ही ऊँचे काष्ठासन पर बिराजमान थे। उस समय देवपत्तन से आये हुए सोमनाथ महादेव के पूजारियों ने राजसभा में प्रवेश किया। महाराजा को प्रणाम करके अपना परिचय दिया... और निवेदन किया : 'महाराजा, देवपत्तन में समुद्र के किनारे पर स्थित भगवान सोमनाथ का काष्ठमंदिर जीर्ण हो गया है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण करना अति आवश्यक है। हमारी आपसे नम्र विनति है कि इस मंदिर के जीर्णोद्धार का पुण्य आप अर्जित करें एवं इस संसार से अपनी आत्मा का उद्धार करें। यह कार्य करने से देश और दुनिया में आपकी कीर्ति शाश्वत होकर स्थापित रहेगी। बरसों तक लोगों की जुबान पर आपकी यशगाथा गूंजती रहेगी। राजा कुमारपाल को यह सत्कार्य अच्छा लगा। उन्होंने पूजारियों को आश्वासन दिया : ___ 'तुमने मुझे इतना सुन्दर पुण्यकार्य बता कर मेरे ऊपर उपकार किया है। इस कार्य के लिए शक्य इतनी शीघ्रता की जाएगी।' पूजारियों को कीमती वस्त्र-अलंकार देकर उनका सत्कार किया गया। उन्हें विदाई देकर राजा ने तुरन्त ही सोमनाथ महादेव के मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य पाँच अधिकारियों को सौंप दिया। कुछ दिनों में ही सोमनाथ महादेव का समूचा मंदिर पाषाण का करने की योजना बनाकर कार्य प्रारंभ कर दिया गया। कुमारपाल का मन उस कार्य में व्यस्त होने से वह प्रतिदिन मंदिर के निर्माण कार्य की जानकारी प्राप्त करता था। कार्य काफी मंद गति से चल रहा था। एक दिन कुमारपाल ने गुरुदेव से पूछा : For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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