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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ कुमारपाल का राज्याभिषेक - अपने मित्र वोसरि ब्राह्मण... जो भटकाव के दिनों में उसका साथी रहा था... उसे लाट देश का राजा नियुक्त किया है। यह सब तो उसने किया है... पर मेरे समक्ष कभी आपको याद नहीं किया... आपकी कोई बात नहीं निकाली!' आचार्यदेव ने दो पल आँखें मूंद ली और फिर आँखें खोलकर उन्होंने मंत्री से कहा : ___ 'महामंत्री, तुम आज राजा के पास जाकर उसे अकेले में कहना कि 'रानी के महल पर आज वह सोने के लिए न जाए!' सबेरे कोई चमत्कार हो और राजा तुमसे पूछे कि 'तुमने मुझे रानी के महल में सोने के लिए मनाही की... वह किसके कहने से?' तब तुम मेरा नाम उसे देना।' महामंत्री ने हाँ कही। उन्हें लगा कि 'अवश्य कल सबेरे राजपरिवार में कोई चमत्कार होगा ही!' वे सीधे ही राजमहल पर गये। महाराजा कुमारपाल से मिले। उनके कानों में गुप्त रूप से कहा : 'मुझे एक अति महत्वपूर्ण बात आपसे अभी - इसी वक्त करनी है!' राजा ने वहाँ पर बैठे हुए अन्य राजपुरुषों को इशारे से बाहर भेज दिया। महामंत्री ने कहा : 'आज आपको रानी के महल में सोने के लिए नहीं जाना है।' राजा ने बिना किसी तर्क-वितर्क के महामंत्री की बात मान ली। चूंकि राजा महामंत्री को अपने पितातुल्य समझता था । महामंत्री अपने निवास पर गये । राजा कुमारपाल रानी के महल पर सोने के लिए नहीं गये। रात्रि में उस महल पर बिजली गिरी | महल जल गया और साथ ही रानी भी जलकर राख हो गयी। सबेरे तड़के ही जब राजा को समाचार मिले तब उसे बहुत आश्चर्य हुआ। महामंत्री को भी सबेरे-सबेरे समाचार पहुँच गये थे। उनके विस्मय की भी सीमा नहीं थी। वे राजा के पास गये। राजा के चेहरे पर रानी के जल मरने की व्यथा थी... तो खुद के बच जाने का आश्वासन भी था। राजा ने पूछा : For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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