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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुदेवने जान बचायी ! ५४ ‘अब आप यहाँ पर सलामत नहीं रह सकेंगे। अच्छा होगा आप गुरुदेव के पास पधार जाएँ... वे ही आपकी रक्षा कर सकेंगे । ' कुमारपाल रात के समय उपाश्रय में आया और गुरुदेव के चरणों में सारी हकीकत बयान की एवं आश्रय माँगा । आचार्यदेव का चित्त द्रवित हो उठा । वे सोचने लगे : 'राजा सिद्धराज को मेरे पर भरोसा है... विश्वास है ... यदि इस युवक को मैं रक्षण देता हूँ तो राजा का द्रोह होगा... और यदि रक्षण नहीं देता हूँ तो उसकी हत्या हो जाएगी ! नहीं... कुछ भी हो ... मुझे शरण में आये हुए इसको बचाना ही होगा। मेरी जान जाए तो जाए... पर कुमार की सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है। यह भविष्य में जिनशासन का महान प्रभावक राजा होनेवाला है!' यों सोचकर मन ही मन आचार्य श्री ने कुछ निर्णय किया और कुमार से कहा : 'तू मेरे पीछे-पीछे चला आ!' वे उपाश्रय के एक कमरे में गये। कुमार उनके पीछे गया। कमरे में जाकर उन्होंने दरवाजा भीतर से बंद किया । उन्होंने एक तहखाने का द्वार खोला । कुमार को कहा : 'तू इस भूमिगृह में... तहखाने में उतर जा। बिलकुल आवाज़ मत करना । ' कुमार उत्तर गया तहखाने में। आचार्यदेव ने भूमिगृह का दरवाजा बंद किया और इस पर किताबों का ग्रन्थों का इस तरह ढेर लगा दिया कि किसी को अंदाजा भी न आ पाये कि यहाँ पर तलधर है ! जितने हिस्से में भूमिगृह था ... उस सब जगह पर ग्रन्थों को जमा दिये। एकदम व्यवस्थित और पंक्तिबद्ध ! बीच-बीच में ग्रन्थों को बाँधने के कपड़े के टुकड़े भी दबा दिये। सब कुछ सुव्यवस्थित ढंग से जमा कर, कमरा बंद करके, आचार्यदेव अपनी जगह पर आकर शांति से बैठ गये । एकाध घंटे बाद पाटन से आई हुई सैनिकों की टुकड़ी कुमारपाल के कदम सूंघती हुई उपाश्रय के द्वार पर आ पहुँची । टुकड़ी का सरदार नया था। वह आचार्यदेव को जानता नहीं था । उसने आते ही आचार्यदेव के पास जाकर बड़े ही रूखे शब्दों में कहा : ‘स्वामीजी, हम लोग महाराजा की आज्ञा से पाटन से यहाँ पर आये हैं। कुमारपाल तुम्हारे इस आश्रम में आया है... उसे हमें सुपुर्द कर दो...' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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