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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारपाल का जन्म ४६ VAN कुमारपाल का जन चौलुक्य वंश के राजाओं में 'मूलराज' नामका एक पराक्रमी राजा हुआ था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र चामुंडराज गुजरात का राजा हुआ था। चामुंडराज के बाद गुजरात के सिंहासन पर दुर्लभराज राजा बनकर आया। दुर्लभराज प्रजा में अत्यधिक प्रिय था...। वह अपने निष्पक्ष न्याय एवं समुचित राज्य व्यवस्था के कारण सब का आदरणीय बना था। दुर्लभराज के बाद उसका पराक्रमी पुत्र भीमदेव राजा हुआ । राजा भोज को भी भूल जाएँ वैसा वह दानेश्वरी था। राजा भीमदेव को दो रानियाँ थी। दोनों रानियों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया था। बड़ा पुत्र था क्षेमराज और छोटा पुत्र था कर्ण। भीमदेव ने अपना राज्य कर्ण को दिया और बड़े बेटे क्षेमराज को 'दधिस्थली' का राज्य दिया । क्षेमराज को देवप्रसाद नाम का पुत्र था। देवप्रसाद भीमदेव का बड़ा लाडला था। देवप्रसाद को त्रिभुवनपाल नाम का पराक्रमी पुत्र था। राजा कर्ण ने अपना राज्य अपने बेटे सिद्धराज को सौंपते हुए कहा था 'तू देवप्रसाद का पूरा ध्यान रखना।' इसी तरह देवप्रसाद ने अपनी मृत्यु के वख्त सिद्धराज को कहा थाः 'त्रिभुवनपाल का ध्यान रखना।' राजा सिद्धराज अपने भतीजे त्रिभुवनपाल को अपना भाई समान मानकर उसे गौरव देता था। उसके मान-सम्मान का ख्याल रखता था। त्रिभुवनपाल भी महान पराक्रमी पुरुष थे। वे अपने नगर दधिस्थली में रहकर प्रजा का अच्छा पालन करते थे। प्रजा में वे काफी लोकप्रिय थे। जिस तरह मानसरोवर में राजहंस प्रसन्न मन से तैरते रहते हैं... वैसे ही त्रिभुवनपाल के मानसरोवर में धर्मरुपी हंस तैरते रहते थे। त्रिभुवनपाल की पत्नी का नाम था काश्मीरा देवी। वह गुणों की मूर्ति थी। अद्भुत रूपवती थी। रुप और गुण के समन्वय ने काश्मीरा देवी के व्यक्तित्व को सर्वप्रिय बनाया था। ___ उस काश्मीरा देवी के गर्भ में एक उत्तम जीव आया । काश्मीरा देवी के मन में कई तरह के शुभ मनोरथ पैदा होने लगे। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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