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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थयात्रा ३९ उस समय मंदिर के विवेकी पुजारी ने राजा को बैठने के लिए सुन्दर आसन बिछाया। तब राजा ने इन्कार किया, और कहा : 'तीर्थक्षेत्र में राजा को आसन पर बैठना नहीं चाहिए... वैसे ही खाट पर या पलंग पर सोना नहीं चाहिए । तीर्थक्षेत्र में किसी भी मनुष्य को दही का भोजन नहीं करना चाहिए ।' पुजारी ने सविनय राजा की बात का अनुमोदन किया । राजा ने पुजारियों को सुन्दर वस्त्र अर्पण किये और सोनामुहरें देकर संतुष्ट किया । तीर्थयात्रा का अपूर्व आनन्द लूटकर, गुरुदेव के साथ सभी पहाड़ से नीचे उतर कर तलहटी में आये । राजा सिद्धराज ने वहाँ पर भी सदाव्रत प्रारम्भ करवाया। याचकों को दान दिया। जूनागढ़ में जाकर भी सदाव्रत खुलवाये और गरीबों के दुःख दूर किये। सिद्धराज ने गुरुदेव से कहा : ‘भगवंत, यहाँ से हम सभी प्रभास पाटन चलें। वहाँ पर समुद्र के किनारे स्थित भगवान सोमनाथ के दर्शन करें ।' आचार्यदेव ने सहमति दी। सभी प्रभास पाटन पहुँचे । भगवान सोमनाथ के मंदिर में गये । राजा सिद्धराज का मन साशंक था कि 'गुरुदेव शायद सोमनाथ महादेव को प्रणाम करेंगे या नहीं !' परन्तु आचार्यदेव ने तो महादेव को भावपूर्वक प्रणाम किया। इतना ही नहीं वहाँ पर बैठकर महादेव की स्तुति गाने लगे । चौवालीस श्लोक रचकर प्रार्थना की । भव बीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ।। 'जन्मरूप बीज के अंकुर को पैदा करनेवाले राग वगैरह जिनके नष्ट हो गये हैं... वे फिर ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो, या जिन हो... उन्हें मेरा नमस्कार हो!' (बाद में यह पूरी प्रार्थना 'महादेव स्तोत्र' के नाम से प्रख्यात हुई - आज भी यह स्तोत्र उपलब्ध है) For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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