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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थयात्रा EVAN ७. तीर्थयात्रा जो भवसागर से पार लगाये उसका नाम तीर्थ! जो दुःखों को दरिये में से उबारे... पार उतारे... उसे कहते हैं तीर्थ! सभी तीर्थों का राजा यानी शत्रुजय! शत्रुजय-गिरिराज के कंकर-कंकर पर अनंत-अनंत आत्माएँ मुक्त हुई हैं। सिद्ध हुई हैं... बुद्धत्व को प्राप्त हुई हैं। राजा सिद्धराज परिवार के साथ पालीताना पहुँचा | पालीताना की प्रजा ने गुर्जरेश्वर का भव्य स्वागत किया : राजा ने गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी से कहा : 'गुरुदेव, हम कल सबेरे गिरिराज पर चढ़ेंगे। और भगवान ऋषभदेव के दर्शन-पूजन कर के धन्यता का अनुभव करेंगे। आज तो विश्राम कर के जरा स्वस्थ हो जाएँ।' गुरुदेव ने अनुमति दी। सभी अपने-अपने प्राभातिक कार्यों में प्रवृत्त हुए। दिन पूरा हो गया... और रात भी गुजर गई। दूसरे दिन सबेरे आचार्यदेव वगैरह मुनिवरों के साथ राजा और राजपरिवार, शत्रुजय पहाड़ पर चढ़ने लगा। सभी के मन उल्लसित थे। सभी के हृदय में भगवान ऋषभदेव के दर्शन करने की तीव्र तमन्ना थी। __ सभी गिरिराज के शिखर पर पहुँचे। भगवान ऋषभदेव के दर्शन-वंदन करके सभी धन्यता का अनुभव करने लगे। राजा और राजपरिवार ने भगवान की भावपूर्वक पूजा भी की। सभी लोग आचार्यदेव के पीछे बैठ गये । आचार्यदेव ने संस्कृत भाषा में नये-नये काव्य रचकर भगवान की स्तुति की। आचार्यदेव ने उन स्तुतियों के भावों को गुर्जर भाषा में गूंथते हुए गद्य-स्तवना भी की। सभी के दिल परमात्मा भक्ति के अपूर्व आनन्द से छलक रहे थे। करीब तीन घंटे गिरिराज पर बिताकर सभी पहाड़ उतरने लगे। राजा सिद्धराज ने श्रद्धा और भक्ति भाव से गद्गद् होकर गुरुदेव से कहा For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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