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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवी प्रसन्न होती है ! २४ देवी ने अमृत से भरा हुआ कमण्डल उनके सामने रख दिया देवेन्द्रसूरिजी ने कहा : 'नहीं, अभी तो रात्रि शेष है, मैं नहीं पी सकता !' देवी ने सोमचन्द्रमुनि के सामने कमण्डल रखा। सोमचन्द्र मनि समयज्ञ थे। उनके पास नियम और उसके अपवाद दोनों का सही ज्ञान था। वे तुरन्त सारा का सारा अमृत गटगटा गये। देवों को आकर्षित करने का मंत्र और राजा-महाराजाओं को प्रभावित करने का मंत्र सोमचन्द्र मुनि की स्मृति में सुदृढ़ हो गये। देवेन्द्रसूरि वे दोनों मंत्र बिसार बैठे। देवेन्द्रसूरिजी को, हालाँकि पीछे से काफी पछतावा हुआ.... पर बात गई और रात गई! शासनदेवी ने दोनों महानुभावों को मंत्रशक्ति के जरिये उठाकर पाटन में उनके गुरुदेव देवचन्द्रसूरिजी के पास रख दिये | शासनदेवी अदृश्य हो गयी। देवेन्द्रसरिजी और सोमचन्द्र मुनि के मुँह से चमत्कारिक घटना सुनकर गुरुदेव देवचन्द्रसूरिजी अत्यन्त प्रसन्न हो उठे। संघ के अग्रणी भी समग्र वृतान्त सुनकर आनन्दित हुए | देवचन्द्रसूरिजी ने सोचा : यह सोमचन्द्र मनि सिद्ध सारस्वत है | छोटी उम्र में वह शास्त्रों का पारंगत बना है। शासनदेवी ने प्रसन्न होकर उसे दो मंत्र दिये हैं। ये सारी विशिष्ट शक्तियाँ होने पर भी यह विनीत है, नम्र है, विवेक उसके हर बरताव में है। बुद्धिमान, गुणवान, रुपवान, और भाग्यवान ऐसे मेरे इस प्रिय शिष्य को मैं आचार्यपद प्रदान करूँ!' । देवचन्द्रसूरिजी ने पाटन के संघ को एकत्र कर के सोमचन्द्र मुनि को आचार्यपदवी देने की अपनी मंशा जाहिर की। संघ ने बड़े हर्षोल्लास के साथ अनुमोदन किया। वैशाख शुक्ल तृतीया का पवित्र दिन तय किया गया । परमात्मभक्ति का भव्य महोत्सव रचाया गया। गुजरात के गाँव-गाँव और नगर-नगर में आमंत्रण पत्र भिजवाये गये। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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