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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वती की साधना * २. सरस्वती की साधना " - आचार्यदेव देवचन्द्रसूरीश्वरजी स्वयं सोमचन्द्र मुनि को पढ़ाते हैं। - साधु जीवन के आचार-विचार सिखाते हैं - समझाते हैं। - बड़े प्रेम से - वात्सल्य पूर्वक सोमचन्द्र मुनि का ध्यान रखते हैं। सोमचन्द्र मुनि पूरी एकाग्रता से पढ़ाई करते हैं... पढ़ी हुई बातों को याद रखते हैं। गुरुमहाराज की विनय करते हैं। गुरुमहाराज की सेवा करते हैं। एकलव्य की भाँति तन्मय होकर विद्याभ्यास करते हैं। पूरी सावधानी के साथ साधु जीवन के आचारों का पालन करते हैं | एक दिन गुरुदेव ने, सोमचन्द्र मुनि को महान् ज्ञानी पुरुषों की जीवन कथाएँ सुनाई। चौदह पूर्व के ज्ञाता भगवान भद्रबाहुस्वामी, श्री स्थूलभद्रस्वामी वगैरह के अगाध-अपार ज्ञान की बातें कही। सोमचन्द्र मुनि को ज्ञान और ज्ञानी की बात बड़ी अच्छी लगती थी! गुरुदेव ने उन्हें 'चौदह पूर्व' नामक शास्त्रों के नाम और उन शास्त्रों के विषयों के बारे में समूची जानकारी दी थी। ___ गुरुदेव से ऐसी बातें सुनते-सुनते सोमचन्द्र मुनि के मन में विचार आते... 'क्या मैं भी वैसा ज्ञानी नहीं हो सकता? मैं इतना ज्ञान प्राप्त कर लूँ तो? ऐसा ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुझे कश्मीर जाकर वहाँ पर सरस्वती की मूल पीठमूलस्थान में बैठकर साधना करनी चाहिए | मैं गुरुदेव से पूछ लूँ... यदि वे खुशी-खुशी इज़ाज़त दे दें, तो मैं कश्मीर जाकर सरस्वतीदेवी की उपासना करूँ!' कुछ दिनों तक सोमचन्द्र मुनि का मनोमंथन चलता रहा। प्राणों से भी अधिक प्रिय गुरुदेव को छोड़कर कश्मीर जैसे दूर के प्रदेश में जाने के लिए उनका मन मना कर रहा था... और इधर ज्ञानप्राप्ति एवं अभिनव प्रज्ञा प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती की आराधना-उपासना करने की तीव्र इच्छा उन्हें कश्मीर जाने के लिए प्रेरित कर रही थी। एक दिन सोमचन्द्र मुनि विचारों की नदी में गोते लगा रहे थे, गुरुदेव For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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