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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिदेव का स्वर्गवास १५८ मंदिरों को तोड़ेगा। साधुपुरुषों की अवहेलना करेगा...इसलिए अजयपाल तो राजा बनने के लिए अयोग्य है। उसे राजा नही बनाया जा सकता! हालाँकि प्रतापमल्ल भी धर्मात्मा नहीं है... पर वह धर्म का विद्वेषी या विरोधी नहीं है। राजा होने के अन्य गुण भी उस में दिखाई देते हैं।' राजा ने कहा : 'जैसी आपकी आज्ञा है, वैसा ही मैं करूँगा।' रात उपाश्रय में बिताकर सबेरे राजा राजमहल में गये। उनका मन काफी हलका हो चुका था। बालचन्द्र मुनि के मन में गुरुदेव हेमचन्द्रसूरि के प्रति न तो भक्ति थी... न श्रद्धा थी... परन्तु घोर द्वेष था। उनकी महत्वाकांक्षाएँ जबरदस्त थीं। बालचन्द्र मुनि की दोस्ती अजयपाल के साथ थी। वे उसे सीढ़ी बनाकर ऊपर उठना चाहते थे, प्रसिद्ध होना चाहते थे। रात में गुरुदेव ने कुमारपाल के सामने अजयपाल के बारे में बुरी बातें कहीं, इससे बालचन्द्र मुनि को गुरुदेव पर बड़ा गुस्सा आया। __ सबेरे-सबेरे... बालचन्द्र मुनि अजयपाल के महल पर पहुँच गये। रात की सारी बात उसे ओर ज्यादा मिर्चमसाला डालकर कह दी। अजयपाल ने कहा 'मुनिराज, अच्छा किया... तुमने रात के एकान्त में सारी बात सुन ली। तुम तो मेरे परम मित्र हो। जब मैं राजा बनूँगा तब तुम्हें मेरे गुरुपद पर स्थापित करूँगा। जैसे वर्तमान में हेमचन्द्रसूरि कुमारपाल के गुरुपद पर हैं वैसे ही।' __पाटन के राजपरिवार में षडयंत्रों का बनना बिगड़ना चालू हो गया। खटपटे प्रारम्भ हो गयीं। महाराजा का मन इन सब बातों से काफी व्यथित रहने लगा। पर उनके मन में जो धर्मचिन्तन चल रहा था... उस धर्मचिन्तन के प्रभाव से वे स्वस्थ रह सकते थे। वैसे भी कुमारपाल की उम्र ८० बरस की हो चुकी थी। उनके मन में चिन्ता थी गुजरात के अभिनव उन्नत संस्कारों के रक्षण की। वैसे ही उन्हें अपने परलोक की भी चिन्ता थी। ___ हेमचन्द्रसूरि के पट्ट शिष्य थे रामचन्द्रसूरि | रामचन्द्रसूरि अपने गुरुदेव की विचार परम्परा और उनकी इच्छा को भलिभाँति समझनेवाले एवं उसका संवर्धन करने वाले थे। वे निडर एवं स्वातंत्र्यप्रिय थे। उनमें तेजस्वी प्रतिभा और प्रकाण्ड विद्वत्ता का समन्वय था। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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