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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिदेव का स्वर्गवास १५६ २६. सूरिदेव का स्वर्गवास कुमारपाल ने आचार्यदेव से पूछा : 'प्रभु, मेरी मुक्ति कब होगी?' आचार्यदेव ने कहा : 'राजन्, इस जन्म का आयुष्य पूरा करके, मृत्यु के पश्चात् तुम देव बनोगे। महासमृद्धिवान देव का भव तुम्हें मिलेगा। विपुल सुखभोग के बीच तुम्हारा मन आसक्ति में डूबेगा नहीं... तुम अनासक्त बने रहोगे। - पृथ्वी पर के शाश्वत् तीर्थों की यात्रा करोगे | - नंदीश्वर दीप वगैरह तीर्थों में भव्य भक्ति महोत्सव करोगे। - महाविदेह क्षेत्र में जाकर तीर्थंकरों की अमृतमयी देशना सुनोगे। - श्रेष्ठ रूपवती देवियों के साथ नंदनवन में यथेच्छ मौज-मजा करोगे। - राजन्, 'देवभव का आयुष्य पूरा होगा। तुम इसी भरत क्षेत्र में जन्म लोगे। - भद्दिलपुर नगर में राजा शतानंद की रानी धारिणी की कुक्षि में पुत्र रूप में जन्म लोगे। तुम्हारा नाम 'शतबल' रखा जाएगा। - शतबल बचपन से ही सारी कलाओं में निष्णात होगा। - बृहस्पति-सा वह विद्वान होगा। - युवावस्था में वह राजा बनेगा और अपने समग्र राज्य में अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार करेगा। - अपने अद्भुत पराक्रम से वह अनेक राज्यों को जीत लेगा। - उस अरसे में इस भरत क्षेत्र में आनेवाली चौबीशी के प्रथम तीर्थकर श्री पद्मनाभ स्वामी विचरण करते होंगे। एक दिन वे विचरण करते हुए भद्दिलपुर में पधारेंगे। राजा शतबल को समाचार मिलते ही वे तीर्थंकर को वंदना करने के लिए जाएंगे। 'प्रभु की अमृतमयी वाणी सुनकर शतबल राजा विरक्त हो उठेंगे, अनासक्त बनेंगे। तीर्थंकर के श्री चरणों में दीक्षा ग्रहण करेंगे। साधु जीवन स्वीकार करेंगे। __- वे तीर्थंकर के ग्यारहवें गणधर बनेंगे | कठोर तपश्चर्या कर के वीतरागसर्वज्ञ बनेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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