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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १५४ उससे उसने मालिन से फूल खरीदे, और भावपूर्वक परमात्मा की पुष्पपूजा की। भक्ति का उल्लास उछलने लगा। संवत्सरी के दिन सेठ-सेठानी और घर के सभी व्यक्तियों ने उपवास किये। नरवीर ने भी उपवास किया । पारणे के दिन मुनिराज को भिक्षा देने के पश्चात् सेठ के साथ नरवीर ने पारणा किया। घर के सभी लोग नरवीर को अपना साधर्मिक बन्धु मानते हैं, पारणे के प्रसंग पर उसे साग्रह खिलाते हैं, पारणा करवाते हैं। उसी दिन शाम को अचानक नरवीर के पेट में पीड़ा उठती है... दर्द गहराता जाता है... उस वक्त आढर सेठ और उसका पूरा परिवार नरवीर के समीप बैठकर उसे अन्तिम आराधना करवाते हैं, नवकार मंत्र सुनाते हैं। नरवीर समताभाव में मृत्यु का वरण करता है | मरकर वह राजा त्रिभुवनपाल का छोटा पुत्र कुमारपाल होता है।' अपने गत जन्म की दास्तान सुन कर राजा कुमारपाल स्तब्ध हो उठे। वे पूछते हैं : 'गुरुदेव, आढ़र सेठ का क्या हुआ?' 'गुरुदेव ने कहा : आढर सेठ की भी मृत्यु होती है... और उनकी आत्मा मनुष्य का जीवन पाती है, और वे ही हैं अपने उदयन महामंत्री ।' __'राजन्, अब समझ में आया न कि उदयन मंत्री को तुम्हारे ऊपर इतना प्यार क्यों है? उसका कारण मिल गया न ?' 'भगवान्! मेरे उन परम उपकारी यशोभद्रसूरीजी का क्या हुआ?' 'वे भी कालधर्म (मृत्यु) पाकर मनुष्य के रुप में अवतरित हुए हैं... और यहाँ पर तुम्हारे सामने बैठे हुए हैं।' ___ 'ओह्! आप ही मेरे गुरुदेव!' कुमारपाल की आँखें हर्ष से नाच उठी। वह खड़ा हो गया। आचार्यदेव के उत्संग में उसने अपना सिर रख दिया। आचार्यदेव बड़े वात्सल्यभाव से उसके सिर पर आशीष बरसाते रहे। उसका मस्तक सहलाते रहे। 'राजन्, अब तुम्हें सुख-दुःख के कार्य कारण भाव समझाता हूँ। सुनिए।' - उस धनदत्त ने शिशु हत्या की इसलिए राजा सिद्धराज के भव में उसे For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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