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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १५२ नहीं लिखा था... उससे हमेशा-हमेशा के लिए बिछुड़ गये थे। नरवीर सोचसोचकर पागल हुआ जा रहा था। उसी जंगल में से साधुओं का एक समूह गुजर रहा था। उस मुनिवृंद के नायक थे आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी। उन्होंने नरवीर को देखा। उसके चेहरे को ही नहीं - उसकी आत्मा को भी देखा। उनके दिल में दया उभरी। नरवीर ने आचार्य को देखा, उसके दिल में भक्तिभाव उमड़ा। नरवीर ने आचार्यमहाराज के चरणों में झुकते हुए अपनी सारी राम कहानी कह सुनाई। आचार्यदेव ने पूरे वात्सल्य और सदभाव के साथ उसके तप्त मन को सांत्वना दी। अच्छा सज्जन आदमी बनकर जीने की प्रेरणा दी। नरवीर को आचार्यदेव का उपदेश असर कर गया। उसे आचार्यदेव अच्छे लगे। उन की बातें अच्छी लगने लगी। आचार्यदेव के मुनिवृंद के साथ कुछ सद्गृहस्थों का समूह भी था। उनके पास भोजन की सामग्री थी। __ नरवीर को भर पेट खाना खिलाया गया । गुरुदेव ने उसे 'एकशिला' नगरी में जाने का निर्देश दिया। नरवीर एकशिला की ओर चला। आचार्यदेव उनके गंतव्य की ओर चल दिये। नरवीर एकशिला नगरी में पहुंचा। वह घूमते-घूमते आढ़र सेठ की हवेली पर जा पहुँचा | आढर सेठ के घर पर तो वैसे भी सदाव्रत चलता था। भूखे-प्यासे लोगों के लिए वह आश्रय स्थान था। सेठ ने नरवीर को देखा। उन्होंने नरवीर से खाने के लिए कहा। नरवीर ने कहा : 'सेठ, मुझे कुछ काम बताइये, काम करूँगा। बाद में खाना लूँगा। मुझे मेहनत की रोटी चाहिए। मुफ्त की मिठाई भी नहीं लूँगा मैं ।' सेठ ने उसकी कुलीनता को परख लिया। उसे अपने घर में ही रख लिया। नरवीर घर के सभी कार्य करता है... और एक सज्जन आदमी की तरह जिन्दगी बसर करता है। इतने में कुछ दिनों बाद आचार्यश्री यशोभद्रसूरिजी विहार करते हुए एकशिला नगरी में पधारे | नरवीर ने उन्हें देखा। वह आचार्यदेव के पैरों में गिर गया। आचार्यदेव ने अत्यन्त वात्सल्य भाव से उस के सिर पर हाथ रखा। नरवीर ने पूछा : 'प्रभो! आप यहाँ पर कहाँ ठहरेंगे? मैं रोज़ाना आपकी सेवा में आऊँगा।' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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